Friday, October 7, 2016

बेरंग बेनूर सी जिंदगी


बेरंग, बेनूर हुई जिंदगी
तुम्हारे बिना खाक हुई जिंदगी
तुम थे रंग थे, फूल थे, बहारे थी
झरने थे, नदियां थी, खुशनुमा फ़िज़ा थी
तुम नहीं तो सब धुँआ धुँआ सा है
दिन हुए है अँधेरे
रातों में भी कालिमा है
तुम्हारे सिवा कुछ नहीं है
तुमसे रोशन सारे जहान है
चलो कोई बात नहीं
क्यों जिए अब जब तुम मेरे साथ नहीं
पकड़ के बाह तुम्हारी
तुम्हारे पास आती हूँ
लेती हूँ सहारा तुम्हारा
तुमसे ही मुस्कुराती हूँ

प्रेम में पगी स्त्री


प्रेम में पगी स्त्री को 
पढ़ पाना 
आसान नहीं होता
सब कुछ छिपा लेती है 
वो मन के अंदर
जैसे कछुवे को होती है महारत
अपनी इन्द्रियों को अंदर 
बाहर करने की
स्त्री भी
मनोभाव ऐसे ही कर लेती है अंदर
हा बस वो प्रेम में पग कर 
खुश बहुत रहती है
गाती है वृहद गान

तेरी याद

किसी के साथ 
बीते हुए लम्हों की 
जो याद आयी
थकी आँखों में 
अश्को के सितारे 
जगमगाते हैं
घूम गया आँखों में 
वो मंजर
जो हंस के तेरे साथ गुज़रा
सच कहूं
बंध गई हिचकियां
तेरी बेसबब याद आयी
तेरी बहुत याद आयी
कैसे भूलू वो लम्हे
जो है तेरे साथ गुज़ारे
अब तो मैं हूँ
तेरी याद है
और पसरी है तन्हाई
कैसे जियूँ 
क्यों जियूँ
कुछ तो रास्ता सुझा दो
एक बार तो खुदा से
रूबरू करवा दो
पूछ लेंगे उनसे अपना हाल
एक राह तो बता दो

Monday, October 3, 2016

ek bheegi shaam

वो शख्स
जो खुद करता था  
रोज सबकी शामें रोशन
आज एक भीगी शाम
उसके नाम हुई

सीखाता था जो
जिंदगी जीने के तरीके
आज वो बातें आम हुई

हर कोई सुना रहा है
उसका किस्सा,
कुछ सच्चा, 
कुछ कच्चा पक्का
वो मीठी बातें अब 
राम का नाम हुई

एक शाम में कैसे
समेट सकते है उसको
जिसकी बातें अब
गीता और कुरान हुई

जब तक रहा 
देता ही रहा
दुनिया को कुछ न कुछ
जिंदगी उसकी 
हवा, पेड़, नदी 
समान हुई

कैसे भूल सकते है उसे
जिस से रोशन 
कायनात हुई

tumhare siwa kuch nahi


मेरे जिस्म में 
तेरी खुशबू
मेरे हाथों में 
तेरे चेहरे की 
छुअन का एहसास

मेरे माथे पर 
तेरे लबों की मुहर
आँखों में 
तेरा ही प्यार

तू मेरे इतने करीब है
जिस्म से रूह तक
तेरा ही पहरा 
तेरा ही चेहरा
तुझसे ही है 
मेरे होने का एहसास

tum ho phir bhi tanha hoon


तुम बैठे हो
फिर भी 
खुद को तनहा 
महसूस कर रही हूँ
तस्वीर के रंग से
खुद को अलहदा 
महसूस कर रही हूँ।

तस्वीर से भला
कभी किसी का 
दिल बहला है???
आज तुमको सामने
चुपचाप बैठा 
देख कर खामोश हूँ
खुद को खुद से 
लड़ता देख रही हूँ

मत मुस्कुराओ 
यूँ 
मुझे बेइंतेहा 
तनहा
देख कर
हर ख़ुशी में तुम्हारी
चुपके से अपने आंसू 
पोंछ रही हूँ।

कोरों से जो 
बह कर निकले
उन आंसू से 
अपना ही पता
पूछ रही हूं
तुम बैठे हो 
फिर भी खुद को
तनहा देख रही हूँ....