Saturday, August 20, 2016

मौत

मौत से मुझे शिकायत है
चुनती है उन्हें अपने लिए
जिसकी यहाँ जरुरत है
रोज़ नज़र डालो दुनिया में
हज़ारो लोग दिखते है
मांगते है दुआ मौत की
फिर भी मौत से नहीं मिलते है
शायद मौत को भी मालूम है
जो है यहाँ काम का
उस दुनिया में भी उसी की जरुरत है

मौत का इंतज़ार

देखो न तुम्हे भी पसंद थी सर्दियाँ
मुझे भी पसंद था वो कोहरे का मौसम
तुम संग दूर निकल जाना
घर न लौटने की जिद करना
तुम्हारा अगला मिलने का वादा देकर
मुझे बहलाना
सब मुझे याद है
तुम नहीं हो फिर भी
वो पल आज भी खास है
पता नहीं कैसे करेंगे सामना
अबकी बार सर्दियो का
तुम नहीं हो
तो कैसी सर्दियाँ
कैसी मैं
कैसा कोहरा
कैसी सड़के
कैसी ठण्ड
उफ़ खुदा करे कि
मुझे भी मौत आ जाये
न मैं बचू
न तुम्हारी याद आये

आँख मिचौली

दिल में दर्द है
आँखों में नमी है
सब हैं लेकिन
तुम्हारी कमी है
सांस चल रही है
वक़्त के साथ
धड़कने रुकने को है 
बेताब
रो रही जमी
रो रहा आसमान
देख रहे हो न तुम
ओ मेहरबान
बिन तुम्हारे
सब अधूरा
न तुम पूरे
न मैं पूरा
एहसास तो दिलाओ
कहाँ हो तुम
अब तो लौट आओ
बस बहुत हुई आँख मिचौली
कुछ तुमने खेली
कुछ मैंने खेली
अब करो 
इस खेल को ख़त्म
टूट जाये तुम्हारे
न होने का भरम
चलो तुम जीते
मैं हारी
अब आ जाओ
तुम पे सब बलिहारी

Friday, August 19, 2016

तुम बिन कैसे रहूँ खुश तुम ही बता दो


पढ़ रही थी कहीं 
आज सुबह
हे ईश्वर 
सबको खुश रखना
पढ़ते ही आ गए 
आँख में आंसू
जब दिल में 
ख़ुशी न हो तो 
कैसे खुश रहा जाये
मेरी ख़ुशी तो तुम थे
तुम ही नहीं तो
कैसे रह सकती हूँ खुश
मेरी हर बात का सबब तुम
मेरी सुबह तुम
मेरी खुशगवार शाम तुम
यहाँ तक की 
झीनी बरसात में भी
एक तुम्हारी चाह
पसंद भी अपनी एक
स्वाद भी अपना एक
बोलो कैसे रहू खुश
अच्छा एक बात बताओ
तुम मेरे बिना 
खुश रह सकते हो
नहीं न
तो मुझसे ऐसी उम्मीद क्यों
मैं क्यों जियूँ तुम्हारे बगैर
मुझे भी आना है 
तुम्हारे पास
अभी इसी वक़्त
आओ आकर ले जाओ मुझे
प्ल्ज़ जैसे 
पहले सुन लिया करते थे मेरी
आज भी
मान जाओ न मेरी बात
वरना मैं खुश कैसे रहूंगी
तुम्हारे बिना यु ही
तड़प कर रात दिन
रोती रहूंगी
अब तुम जानो
तुम्हे क्या करना है
लेने आना है या यू ही
रोते हुए छोड़ देना है

Thursday, August 18, 2016

मौत एक सच

मौत 
चिर निंद्रा
कुछ पता नहीं
कहाँ गया वो
जो कभी था
सशरीर अपना
उड़ गया पंछी
रह गई देह

तड़प रहा पंछी
पुरानी देह में आने को
नहीं दे रहा देवदूत
रोक कर खड़ा है 
रास्ता

कहाँ जाये जीव
बेबस बेचारा
न देह
न देह का रास्ता

अब तो भटकना होगा
जब तक न मिले मुक्ति
जब तक न मिले 
नया चोला

बस देखता रहे पंछी
अपनों का तड़पना
चिल्लाना
रोना
शोक मनाना

क्योंकि 
उसके पास
आवाज़ नहीं है
भाव है

लेकिन
देह नहीं है
बिना देह
सब स्वप्न
पंछी भी
पंछी के अपने भी

परख


कच्चे रंगों में पक्का रंग 
ढून्ढ रही है पगली
देखो न फिर से 
गलती कर रही है पगली

पहले करने है मजबूत 
अपने हाथ पाँव
खुद को खुद ही 
मज़बूर कर रही है पगली

कितने अपने खड़े है सामने
लेकिन पहचान ही नहीं 
पा रही है पगली

मांग सकती है अपनों से 
सही सलाह
दुश्मनों को दोस्त समझ
धोखा खा रही है पगली

समझ नहीं आ रहा 
कैसे दिखाए इसे सही राह 
ये तो किसी की भी 
नहीं सुन रही है पगली

Tuesday, August 16, 2016

अमर प्रेम


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कितना पवित्र रिश्ता है प्रेम
जहाँ न लेने की चाह नहीं होती
होता है तो सिर्फ समर्पण
जो कुछ है सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा
जीते है तो तुम्हारे लिए
मर भी जाये तो बस
अपने पवित्र प्रेम के लिए
कितना कुछ दे देते है 
एक ही पल में
जो जन्मों तक याद रह जाता है
एक प्यार की तरह
एक सम्पूर्ण की तरह
प्रेम से एक स्त्री ही सम्पूर्ण नहीं होती
पुरुष भी होता है
अगर प्रेम पवित्र हो तो
क्योंकि स्त्री की तरह
पुरुष को भी चाहिए होता है
एक सच्चा प्रेम करने वाला
जहाँ वह अपनी हर भावना को
जो कहीं नहीं कह सकता
व्यक्त कर सके
ले सके वो विश्वास
जो स्त्री उस से चाहती है
तभी होता प्रेम का अमर होना
वरना  कहने को तो सभी प्यार करते है
लेकिन वक़्त के साथ उतर जाता है बुखार
अहम् को खो जाना
समर्पण करके खो जाना
यही है प्रेम

इंतज़ार सूनी आँखों का

देखो न तुम्हारे साथ 
जागने की 
आदत सी पड़ गई है
तुमको रात में जल्दी नींद 
नहीं आती थी
तुम इंटरनेट पे आँखे गड़ाये
मेरा इंतज़ार करते
और मैं 
तुमसे बेखबर मस्त 
थोड़ी सी तुमसे बात करके
सो जाया करती थी
तुम कहते भी थे 
"इतनी जल्दी सो गई"
मैं शैतानी से जवाब देती "हां"
मुझे सुबह बहुत काम है
तुम भी मन मसोस कर 
अपना काम बंद कर देते
और मेरी तरह झूठी मूठ
आँखे मूँद सो जाया करते

देखो आज तुम नहीं हो
तो मुझे भी नहीं आ रही
लग रहा है अभी आएगा 
तुम्हारा मेसेज
"सो गई क्या"
अब मुझे रात रात भर 
नींद नहीं आती
तुम्हारे मेसेज के लिए 
जागा करती हूँ
लेकिन तुम तो जैसे 
मुझसे सच्ची का ही 
रूठ ही गए हो
कभी सोचा है
कैसे रहूंगी मैं तुम्हारे बिना?
तुम्हे तो पता है
मुझे कितनी आदत है तुम्हारी?
मेरा एक भी काम 
तुम्हारे बिना नहीं होता
बताओ न 
क्यों चले गए इतनी दूर?
जहाँ से कोई नहीं आता
कैसे बर्दास्त करू ?
मैं तुम्हारी ये दूरी
या तो 
अपने पास बुला लो
या तुम 
आ जाओ प्लीज़
नहीं रह सकती मैं 
तुम्हारे बिना
ये तुम भी 
अच्छे से जानते हो
फिर क्यों गए मुझे 
तनहा छोड़ कर
प्ल्ज़ आ जाओ न
अब तुम्हे न तो 
परेशान करुँगी
न तनहा छोडूंगी
तुम्हारा हर पल 
ख्याल रखूंगी
मान लो न मेरी बात
जैसे पहले 
एक बार में 
मान जाया करते थे।

वादा जो निभा न सके हम


तुमने कहा था 
साथ जिएंगे
तुम्हारे साथ 
जी तो न सकी
हां तुम्हारी यादों में रोज़ 
तिल तिल करकें 
मर जरूर रही हूँ
कोई रात ऐसी नहीं जाती
जो आँखे 
तुम्हारी यादों से न भीगे
कभी कभी तो 
आंसू का सैलाब
रोकना मुश्किल हो जाता है
कितनी बेबसी है न
इंसान हंस तो सबके सामने
सबके साथ सकता है
लेकिन 
रो नहीं सकता
कौन व्यक्ति 
क्या मतलब निकाले
कुछ पता नहीं होता
तुम्हारी यादों ने 
मुझे भीतर से
तोड़ सा दिया है
तुम्ही बताओ 
अब इस बेवजह
बेसबब 
जिंदगी का क्या करूँ
तुम थे तो मौसम भी 
रंगीन हुआ करते थे
अब तो सूनी रातें, 
खाली सूखी बरसाते, 
पतझड़ सा बसंत

कुछ भी अच्छा नहीं लगता
जितना कठिन साथ जीना है
उस से भी ज्यादा मुश्किल है 
साथ मरना
दुनिया को कहाँ अच्छा लगता है 
दो लोग एक साथ 
एक ही जगह
खिल खिलाकर रहे
तुम्ही निकालो न 
कोई रास्ता
क्योंकि 
जब भी जिंदगी में फँसी
उलझी
तुमने ही मुझे उबारा 
मेरे ट्रबल शूटर 
तुम्ही तो रहे हो हमेशा

इस बार भी कुछ करो न
नहीं जी सकती 
तुम्हारे बिना
क्योंकि 
तुमको आउट ऑफ़ फ्रेम करके
कभी कुछ सोचा ही नहीं
हमेशा 
अपने फायदे की बात सोची
तुम दोगे मुझे कन्धा
पंहुचा कर आओगे 
मुझे मेरे आखिरी गंतव्य तक
लेकिन तुम तो 
पहले ही चल दिए
मुख मोड़ कर
बिना कुछ बताये
बिना कोई आगे के 
इंस्ट्रक्शन दिए
बोलो क्या आदेश है
मुझे अभी भी 
तुम्हारे हुक्म का इंतज़ार है
आओ और पूरा करो 
अपना वादा
जिंदगी भर साथ निभाने का
साथ चलने का
बुढ़ापे में साथ निभाने का
दांतो के एक सेट से ही
काम चलाने का