Wednesday, April 6, 2016

पापा का जाना

जीत गया काल
हार गए पापा 
उन्हें तो पता भी नहीं था
वो ऐसे चले जायेंगे एक दिन
बिना किसी से कुछ कहे
कहते भी कैसे
जब वो 
खुद ही नहीं जानते थे
यु अचानक 
आएगा कोई 
खौफनाक मंजर
सारे सपनो के महल
धराशायी हो जायेंगे
दीवाली का दिन
सुबह से ही 
उत्सव का माहौल
कचौरी के लिए भीगी दाल
तरह तरह की सब्जियां
पूरी 
सब बनने के लिए आतुर
हां थोडा सा 
पापा को बुखार था 
दो दिन से
सब खुश थे
लेकिन 
अचानक पापा की आँखों के आगे 
छा गया अँधेरा
वो अँधेरा 
फिर कभी हटा ही नहीं
न पापा की आँखों से
न हमारे जीवन से
पापा जो 
छिन गए थे हमसे
एक तो दीवाली की अमावस
दूसरी हमारी अमावस
वो अभी और जीना चाहते थे
बेटी की शादी का सपना
बेटे को 
सेटल करने का सपना
सब सपना ही रह गया
दो चार साल  
और मिल जाते 
काश उन्हें
तृप्त होकर तो जाते
लेकिन
डॉ भी कुछ न कर सके
हम लोग भी 
ठगे देखते रहे