Wednesday, March 16, 2016

ये कैसी उम्र में आकर मिले हो तुम

ये कैसी उम्र में आकर मिले हो तुम?

अब जब की सब छूटता सा नजर आता है

धुंधला गई है निगाहे
मन कुछ स्थिरता चाहता है

काले बाल अब पूरे काले न रहे
उनमे रंग भरना पड़ता है

नहीं रही वो उम्र कि तुम्हे
जी भर कर देखू

घुमु फिरू, नया जीवन जियु

देखो न मेरे पैर भी अब
मेरा साथ नहीं देते

मेरे चेहरे ने भी खो दिया है 
अपना स्वाभाविक रूप

शरीर भी बेडौल हुआ जाता है

थाम कर हाथ तुम्हारा
दूर तक नहीं चल सकती

सुनो न 
अब तुम्हे मेरे साथ साथ चलना होगा

गर बैठ जाऊ थक कर तो
तुम्हे भी आराम करना होगा

नहीं मचाना होगा शोर
क्योंकि 

अब मुझसे
जल्दी कोई काम नहीं होता
थोडा सब्र से काम लेना होगा

कुछ उम्र का तकाज़ा
कुछ देर से हमारा मिलना

शायद कुछ एहसास जो बाक़ी  थे
अब अपना आकार ले सके

हम निभा सके एक दूजे का साथ
कुछ पल तो अपने लिए जिए

Tuesday, March 15, 2016

तीन एह्सास ☺☺☺ एक साथ

एक सुकूने जहाँ की
तलाश में
उम्र गुजार दी
यु ही
न जहाँ मिला
न सुकून
उम्र भी
आधे रस्ते पे
मुँह मोड़ चली

देखना 
उड़ न जाये 
ये मनौतियां
जो रखी  
तुमने संभाल कर
बरस हो गए
अब तो पढ़ लो 
उन्हें एक बार

रख छोड़े 
जो एहसास
तुम्हारे लिए
वो आज भी
अछूते है
तुम आकर 
एक बार ही सही
उन्हें हाथ तो लगा दो
देखना 
सब जी उठेंगे
तुम्हारी ऊष्मा से 
बतियाने लगेंगे 
तुमसे
अपनों की तरह