Wednesday, March 9, 2016

महिला दिवस


आज इतना दुलार क्यों

रोज रोज मिलते है ताने
झेलने पड़ते है कितने बहाने
नहीं पूछ सकती 
कोई प्रश्न
नहीं दे सकती 
उत्तर का प्रतिउत्तर
तमाम लांछन बेवजह
सहने पड़ते है
मैं पूछती हूँ
सिर्फ एक दिन क्यों
दुलार करते है

अपनी जिंदगी का 
हर कोना 
कर देती है न्योछावर
अपना नाम तक भूल 
रह जाती  है 
फलाने की पत्नी
फलाने की माँ
उसकी बहू
उसकी खुद की जनी 
औलाद भी 
पितृ वंश की कहलाती है
फिर भी 
स्त्री दया की पात्र क्यों 
कही जाती है

सदियो से ढूंढ रही हूँ जवाब
अब तक नहीं मिल पाया है

जब भी पुछा
बहुत बोलती हो तुम
यही ख़िताब पाया है

पूछने है बहुत से प्रश्न
अगर 
समय मिले तो बतलाना
बेबस 
लाचार 
हीन 
ये तोहमते 
हम पे 
कभी मत लगाना
कभी मत लगाना