Wednesday, February 17, 2016

मेरे अपने


मुझमे मेरा क्या था
सब तो तुम्हारे द्वारा 
तय 
किया गया था

मेरी बाहर की जिंदगी
कहाँ जाना है
किस से मिलना है
क्या बात करनी है
कौन सा कोर्स करना है
कब किसके साथ
 रखनी है दोस्ती
कब आना और जाना है

तुमने तय किये मेरे 
भीतर के रास्ते
मेरे तौर तरीके
मेरे संस्कार
मेरी बातें
मेरे गुण अवगुण
मेरा रंग ढंग

यहाँ तक कि 
मेरी पढाई
मेरे दोस्त
मेरा परिवेश
मेरा परिवार

मैं तो बस बंधी थी
अपनी मर्यादा से

मुझमे हिम्मत कहाँ थी
जो मैं खुद की बात को
रख सकु सबके सामने

यहाँ तक की 
तुम्हारे आगे भी
मेरी जुबान लडखडाती
नजर आती थी

तुम्हारी नजर का पैनापन ही
बता देता है मुझे
तुमसे कब कौन सी बात कहनी है

औरत हूँ न
नजरो को पढ़ना
बचपन में ही जो सीख लिया था

कहाँ रही हिम्मत अब
जो अपना आकाश 
तय कर सकु

तोड़ सकु सीमा
पा सकूँ राहत
घुटन
जलन
सड़न से