Sunday, August 21, 2016

वीरान सी दुनिया है आँखों में पानी है

तुम्हारे होने से थी 
आबाद दुनिया दिल की
अब वीरानी ही वीरानी है
दिल के जंगल में लगी है आग
न तुम हो बुझाने वाले
न ही कहीं पानी है

सुलग रहे पेड़ 
चीड़ देवदार के
छाव की लेकिन 
दरकार पुरानी है

जो है खुद आग के चंगुल में
वो क्या देगा किसी को ठंडक
लगी है अगर प्यास उन्हें
अब तुम्हे ही खुद बुझानी है

तुम रोये तो रो देगा अस्मा
सैलाब सा आएगा धरती पे
नहीं थमेगा यादो का बवंडर
तुम रहो खामोश
यही इल्तज़ा पुरानी है

थम जाये ये आंसू
कुछ तो करो ऐसा
फेरो नजर मोहब्बत की
सारी महफिल पे

सबकी आँखे नम है
सबकी आँखों में पानी है

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