Saturday, August 20, 2016

आँख मिचौली

दिल में दर्द है
आँखों में नमी है
सब हैं लेकिन
तुम्हारी कमी है
सांस चल रही है
वक़्त के साथ
धड़कने रुकने को है 
बेताब
रो रही जमी
रो रहा आसमान
देख रहे हो न तुम
ओ मेहरबान
बिन तुम्हारे
सब अधूरा
न तुम पूरे
न मैं पूरा
एहसास तो दिलाओ
कहाँ हो तुम
अब तो लौट आओ
बस बहुत हुई आँख मिचौली
कुछ तुमने खेली
कुछ मैंने खेली
अब करो 
इस खेल को ख़त्म
टूट जाये तुम्हारे
न होने का भरम
चलो तुम जीते
मैं हारी
अब आ जाओ
तुम पे सब बलिहारी

1 Comments:

At August 21, 2016 at 11:01 PM , Anonymous Anonymous said...

nice.....:)

 

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