Monday, November 2, 2015

काश


काश हम दोनों 
चांदनी रात में
एक दूजे संग 
बैठकर खाना खाते
चाँद उतर आता 
हमारी थाली में
मिलबाँट कर 
आधा आधा खाते
न रहती कोई चाह 
चांदनी की
बस यु ही 
बैठ आपस में 
फुरसत से बतियाते
लगा कर 
यादों का तकिया 
सिरहाने
चुपचाप तानते 
सितारों का लिहाफ
सर पर
जाने कब 
बेखबर हो
वही यादों संग 
लुढक जाते
न होता कोई 
जगाने वाला 
न सताने वाला
बस यु तुम संग
ज़माने से बेखबर हो
उम्र बिताते