Monday, April 27, 2015

bhukamp

हिल गई धरती
दहल गया दिल
हिला तन
हिला मन
हिल गया सर्वांग
चल रहा था सब कुछ सहज सा
अचानक ऐसा क्या हुआ?
हिला रहा था हमें कोई
लगा एक सेकंड में कुछ भी हो सकता हैं
क्या पता
नहीं बचते हम
नहीं रहता कुछ भी
सब राख में
सुन्दर शरीर
सारी   उम्र संभल कर रखा
सजाया, संवारा, खूबसूरत बनाया
उफ़ सब यही का यही धरा
कुछ भी नहीं शेष बचा
बच  दूसरा ख्याल आया
मान लो हम बच जाते हैं
लेकिन
अगर भागना पड़ता तो
 लेकर घर से जाते
तो दुनिआ भर का साजो सामान
क्या क्या ले जाते?
जीवन भर की कमाई
जो फ डी के रूप में हमारे पास पड़ी हैं वो ?
या फिर
अपना मकान
अपनी दूकान
जेवर या फिर जायदाद
यहाँ तक कि राशन भी ले जाना हो तो कितने दिन का ?
 कुछ भी तो नहीं ले जा सकते हैं
सब यहीं  तो रह जाना हैं
 फिर दिल को बार बार क्यों
डराना हैं?
रुलाना हैं ?
एक ही विचार आता  हैं
चलो जोड़े कुछ भगवत कृपा
ईश्वर का नाम
भक्ति के काम
यही साथ जायेंगे
बाकि तो हम
धरती का सामान हम
धरती पर ही  छोड़ जायेंगे