Friday, August 29, 2014

मीठे शब्द

कहाँ से लाते हो इतने मीठे शब्द
जो पढ़ते ही सीधे दिल मे उतर जाते हैं
बना कर यादों का तकिया..सिरहाने रख कब सो जाती हूँ
पता भी नही चलता...सच बहुत अच्छा लिखते हो
पता हैं एक क्वालिटी क्या हैं तुम्हारी?
तुम्हे पिछला सब याद जो रहता हैं
मैं तो लिखना भी चाहू तो शब्द ही फिसल जाते हैं
मेरी गोद से...एक छोटे बच्चे की तरह..
जो घुटनो के बाल चल कर पूरा घर घूमना चाहता हैं..
भले ही सामने कितना भी कोई नुकसान पहुचाने वाला समान रखा हो
उसे पता हैं जहाँ गिरेगा मैं तो हूँ ही संभालने के लिए
लेकिन मैं शब्दो को तुम्हारी तरह जीना चाहती हूँ..
शब्दो के साथ सैर करना चाहती हूँ...
अबकी जब तुम आना तो मेरे लिए...
कुछ शब्दो को साथ ले आना...ताकि मैं भी स्वतंत्र विचरण कर सकु
खुले आकाश मे शब्दो के साथ..
हाँ..एक बात उनसे कहना..वो घबराए नही मैं भी उन्हे
तुम्हारी तरह पूरा सम्मान दूँगी...प्यार करूँगी
और सहेज कर रखूँगी अपनी तिजोरी मे...
ताकि अनमोल जेवर की तरह वो मेरे
गाढ़े वक़्त मे काम आ सके...और जब उनको तुम्हारी याद आए तो
वो संभाल कर तुम्हारे पास जा सके...लेकिन..लेकिन ...लेकिन
मेरे पास लौट आने के लिए...मुझे जिलाने के लिए
तुम्हारा हाल पल खुशनुमा एहसास करने के लिए
क्यूँ लाओगे ना मेरे लिए भी चन्द..मीठे..भोले भाले शब्द

Thursday, August 28, 2014

सुनो कान्हा...तुम ही तुम



सच एक एहसास हो तुम
जीवन का विश्वास हो तुम..
तुमसे मिलता हर दम संबल..
बढ़ते रहते सबका मनोबल..
सच कहु मेरे जीवन की...
टूटी हुई एक आस हो तुम..
तुम बिन जैसे निःस्वास हुई मैं..
तडपू ऐसे मछली जल बिन..
मेरी हर एक स्वास हो अब तुम...
कैसे कहूँ क्या क्या हो तुम...
भाई बंधु सखा पिता...सब नाते ...तुमसे जा मिलते..
तुम ना हो तो सारे रिश्ते .......हवा मे घुलते दिखते..
तुमसे पल पल...तुम बिन.......... अधूरापन..
सुनो कान्हा...तुम ही तुम ...तुम ही तुम...