Friday, July 4, 2014

मुझे गर्मियो की छुट्टी का इंतज़ार हैं..

आज कुछ नही
समझ आ रहा
क्या लिखू तुम्हे...
दिमाग़ खाली खाली सा हो गया हैं..
जैसे गर्मी के दिनो मे
पंखा नाममात्र को घूमता हैं
उस नीरवता भरे
वातावरण मे
तब या तो अपनी
सांसो की आवाज़ सुनाई देती हैं
या फिर पंखे की घूर्र घूर्र
सुनो..
तुम तलाश करते हो...
सब मे जीवन
तितली के जैसा....
बचपन मे भी
हम बैठे रहते थे...
इसी इंतेज़ार मे की
कब इल्ली से प्यूपा बने
प्यूपा से तितली...कहते हैं तितली का 

अपना कोई रंग नहीं होता
जिस फूल पे बैठती हैं
वही रंग ले लेती हैं 
हम औरते भी तो ऐसी ही हैं
तितली की तरह
जिस फूल पे बैठी 
वही रंग ले लेती हैं
उम्र वही बिता देती हैं 
निस्वार्थ   भाव से
बिना कुछ इच्छा किये
छोडो  बड़ी बड़ी बाते
अभी भी  बच्चे ही बने रहते हैं
सच 
कितना वक़्त लगता था...न
पूरी प्रक्रिया मे...
फिर भी हम नही थकते थे
छोटे छोटे घुटनो के बल
बैठे रहते थे पूरा दिन..

घर वालो से छिप कर
जबकि गर्मियो की छुट्टी मे
मम्मी हमे अपने बगल मे 

सुला लेती थी..
लेकिन उनकी आँख लगते ही हम
दरवाजा खोल कर चुपके से बाहर
बिना कोई आवाज़ किए
बगीचे मे...सच क्या दिन थे ना..
आज जीवन बचा ही कहाँ हैं..
तुम अपनी नौकरी मे.....
मैं अपनी घर की चाकरी मे...
ना तुम्हे फ़ुर्सत ना मुझे..
फिर भी मन हैं
बार बार जुड़ जाता हैं
पुरानी यादों से..

पुरानी बातों से
सुनो 

अपना ख़याल रखना..
अबकी गर्मियो मे शायद..
हम फिर मिले...
अपने बच्चो के साथ..
कुछ पुराना 

तलाश करते हुए..
कुछ अपना सा

तलाश करते हुए..
मुझे गर्मियो की 

छुट्टी का इंतज़ार हैं..


Thursday, July 3, 2014

बहुत अलग हो तुम



 एक बात बताओ... 
कैसे लिख लेते हो 
 इतने अच्छे खत.. 
कभी प्यार मे भीगे.. 
कभी धूप से चटख.. 
कभी आँसू से गीले... 
कभी रंगीन गुब्बारो की मानिंद 
हर खत मे छिपा होता हैं 
एक नया सवाल.. 
जो मैं किसी से नही पूछती 
फिर भी तुम समझ जाते हो 
दे देते हो प्यारा सा उत्तर 
जिसकी मुझे तलाश रहती हैं... 
कब पढ़ा तुमने मुझे 
मैं तो कभी 
तुम्हारे पास भी नही आई 
ना ही मैने कभी अपनी 
भारी भारी आँखो से 
तुमको नज़र भर देखा... 
शायद तुमने भी 
कोई कोर्स किया होगा...... 
मन को पढ़ने का... 
या अपने बुज़ुर्गो से 
सीखी होगी ये पुश्तैनी विधा.. 
कुछ भी हो... अब तुम 
पारंगत हो चुके हो 
महारत हासिल कर ली हैं 
इस विद्या मे 
अब तुम्हे कोई नही हरा सकता
ना ही कोई दुखी होकर 
तुम्हारे पास से गुजर सकता हैं 
तुम जान लड़ा दोगे.. 
उसे हसाने मे 
अपना बनाने मे 
भले ही तुम्हे नाको चने चबाने पड़े.. 
सच ..तुम और तुम्हारी 
ये कलाकारी 
दुनिया से तुम्हे बहुत अलग करती हैं 
नही रह जाते तुम और 
अहमी पुरुषो की तरह 
जो जूते की नोक पर रखते हैं 
स्त्री के ज़ज्बात 
मज़ाल हैं..
वो चू भी कर जाए 
उनके सामने..
भले ही दिल 
तार तार हो चुका हो.. 
सच ..बहुत अलग हो तुम

Wednesday, July 2, 2014

"मुझे मिस करती हो"



वो सर्द रात... 
मेरा रज़ाई मे बैठ कर  
तुम्हारे बारे मे सोचना 
सोचते सोचते कहीं गुम हो जाना 
सामने लॅपटॉप रखा हैं  
इंटरनेट भी ऑन हैं... 
लेकिन अब मैं वहाँ नही हूँ.... 
अतीत की यादों मे गुम 
दिमाग़ जैसे फ्लॅशबॅक मे चला गया हैं 
एक एक सीन आँखो के आगे  
तैरते जा रहे हैं... 
तस्वीरे गड्डमगद्द होती जा रही  
एक के उपर एक... 
जैसे यादें नई पुरानी.... 
कभी कोई याद उपर जाती हैं 
कभी कोई याद.. 
आह यादें भी कितनी सुखद होती हैं ना 
चाहे वो दुख भरी क्यूँ ना हो 
फिर भी बाद मे सोच कर 
सुख ही देती हैं.... 
सब का सब्र से  
दुख मे साथ देना 
कंधे से कंधा मिलाकर चलना 
ये एहसास दिलाना कि तुम 
अकेले नही हो... 
बाद मे दिल को गर्व दे जाता हैं 
पापा का जाना...मेरा अकेले हो जाना 
तुम्हारा प्यार से मुझे संभालना... 
बताओ क्या कोई भुला सकता हैं 
नही ना...एहसान हैं तुम्हारा 
जो उस वक़्त तुम मेरे साथ थे... 
या ऐसी ही कुछ सुखद यादें... 
मेरा आगे पढ़ाई के लिए निर्णय 
घरवालो का विरोध..... 
तुम्हारा मेरे साथ होना 
सच सोचते ही होंठो पे 
धन्यवाद की लकीर  
खिच जाती हैं...... 
शायद तुम साथ ना होते तो 
आज मैं जो हूँ मजबूत सी 
वो ना होती 
होती एक नंदी चिड़िया की तरह 
जिसे हर वक़्त देखभाल की ज़रूरत होती हैं 
या जंगल की बेल की तरह...कहीं भी.... 
आयाम ले लेती.. 
लेकिन तुमने मुझे...निर्णय लेना सिखाया 
अपनी बात पे अडिग रहना सिखाया 
फिर तुम दूर चले गये.... 
अब पूछते हो...."मुझे मिस करती हो" 
नही हैं मेरे पास जवाब कोई 
अपने आप से पूछो...... 
जवाब मिल जाएगा..... 
हाँ.....जो जवाब मिले....मुझे भी ज़रूर बताना 
इंतज़ार रहेगा तुम्हारे जवाब का..