Thursday, June 5, 2014

लेन देन


पहले जमाने मे मुद्रा  
नही हुआ करती थी.. 
लोग अपने व्यवहार मे
लेन देन  
अनाज बदल कर  
किया करते थे.. 
सब के पास  
खूब सारा  
वक़्त हुआ करता था 
आपस के सुख दुख  
बाटने की खातिर 
यहाँ तक कि  
एक का मेहमान 
पूरे गाव का मेहमान  
हुआ करता था.. 
कोई अचार दे जाता  
कोई चारपाई 
कोई मट्ठा पिलाता  
कोई आम खिलाता 
मिल बाट कर रहते थे... 
खुशी और गम  
सब एक साथ  
सह लिया करते थे.. 
अब तो जैसे  
वक़्त ही नही रहा  
किसी के पास 
सब भागे जा रहे हैं.... 
बिना मंज़िल की  
पहचान किए 
बस कमाना हैं,  
खाना हैं 
मर जाना हैं.. 
जीवन की आपाधापी मे.... 
कोई किसी के लिए 
कुछ सोच ही नही पाता . 
ना अच्छा ना बुरा 
बस जिए जा रहे हैं.... 
जैसे खुद पे एहसान  
किए जा रहे हैं.. 
ऐसे मे लेन देन भी कैसा...  
स्वार्थवाला.. 
उसने वो दिया 
मैने ये दिया.. 
कहाँ वक़्त हैं 
किसी की ज़रूरत जानने 
जज्बातों को समझने का... 
साथ देने का... 
दूसरे के दुख मे  
कूद पड़ने का.... 
सच आज कल 
लेन देन का  
मौसम नही रहा... 
सब कुछ बदल गया... 
इंसान इंसान ना रहा... 

Wednesday, June 4, 2014

सोंधी मिट्टी

मेरे गाव की सोंधी मिट्टी
भरती हैं मस्ती दिल मे..
वो घर के बाहर का चौबारा...
आज भी हैं खुश रहता..
जब मिल बैठते सारे बुजुर्ग...
गप्पे खूब लड़ाते.....
करते दूर देश की बातें
बच्चो संग उधम मचाते
परियो तक ले जाते..सबको..
भूत प्रेत से डराते
पंछी आते पानी पीते......
नये राग हैं गाते...........
अम्मा की सोंधी सी रोटी....
प्याज़ के संग खूब भाती
रहते मिलकर एक दूजे संग
प्यार की फसल .लहलहाती.
ऐसा गाव हैं मेरा...प्यारा गाव हैं मेरा