Friday, July 11, 2014

प्रेमी कभी ओवर ऐज होते ही नही..



एक साँस मे पढ़ गई 
तुम्हारा पूरा खत
सच ऐसा लगा..

कितना सही लिखा हैं तुमने...
तरह तरह के ख़याल 

आते हैं जहन मे..
लेकिन 

उम्र का जामा पहना कर
हम उन्हे झटक दिया करते हैं...
या 

खुद से ही हो जाते हैं शर्मसार....
लेकिन

फिर भी पलता हैं 
हमारे भीतर
एक सपना..जो 

भागना चाहता हैं..
दौड़ना चाहता हैं..फिर से 

पकड़ना चाहता हैं..
वही सब कुछ...

जो हम छोड़ आए कहीं पीछे..
पता हैं ये हालत हमारी ही नही हैं..
आज मेरे नेल पेंट की शीशी 

टेबल पे पड़ी थी..मैने अपनी मम्मी को 
उसे अपने हाथो पे...लगाते देखा.. 
देख कर बस यही ख़याल आया..
उम्र कितनी भी हो जाए..

भीतर की लड़की
कभी बड़ी नही होती..

वो आज भी उछलना, कूदना
सहेलियो के साथ 

बातें करना चाहती हैं..
क्यूँ बड़े हो जाते हैं हम ?
अब तो मन बार बार यही 

प्रशण पूछता हैं अपने आप से..
मुझे सपने देखना अच्छा लगता हैं..
पता नही क्यूँ...मन नही करता
सपनो की दुनिया से बाहर निकलु...
सुनो...मैने कब कहा..

सपनो की कोई 
एज-लिमिट होती हैं..
प्रेमी तो कभी ओवर ऐज  होते ही नही..
क्यूंकी प्यार कभी बूढ़ा नही होता..बल्कि वो तो
बूढ़ो को भी जवान कर देता हैं..
इसलिए सच 

सपने देखना..सबसे अच्छा..

1 Comments:

At July 20, 2014 at 2:48 AM , Blogger Vaanbhatt said...

बेहतरीन...

 

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