दिन गुनगुना सा हो गया..
सूरज की कलाकारी..के आगे...
हम फीके पड़ जाते हैं..
वो बिखेरता हैं रंग अनोखे...
हम बस बटोरते रह जाते हैं..
देता हैं एक मुस्कान..
भरी ठंडक मे....आ जाती हैं
जिस्म मे नई जान
मेरे प्यारे सूरज....
तुझे सुबह की पहली प्रणाम..
सुबह का सूरज....
खिलखिलाती सर्दी...
चाय का कप....
हाथो मे अख़बार....
दिन गुनगुना सा हो गया..