Saturday, August 31, 2013

मेरे अल्लाह तेरे राम..एक ही नाम.. कौन खरीद सकता हैं इन्हे..किसके पास हैं इतने दाम


एक नादिर के जाने से क्या होता हैं... 

रोज़ पैदा हो जाते हैं...यहाँ नये नादिर.. 

जो करते हैं कत्लेआम दुनिया मे.. 
फैलाते हैं...नफ़रत..चारो ओर 
जिंदगी नाटक होती तो अच्छा था.. 
कम से कम अपना पार्ट अदा कर के  
अलग हो जाते.. 
यहाँ तो पल पल जीना पड़ता हैं... 
लेना पड़ता है रोज़ कुछ निर्णय.. 
अपनी खातिर, अपनो की खातिर.. 
  
मिटने के बाद ही मिलता हैं सुकून.. 
चाहे तो नदी से, हवा से...फूल से..खुश्बू या हिना से पूछ लो.. 
कुछ रिश्ते पास या दूर होने से टूट ते नही हैं... 
वो तो होते हैं अटूट..जिन्हे कोई नही हिला सकता.. 
(ये हैं मन का रिश्ता) 
मेरे अल्लाह तेरे राम..एक ही नाम.. 
कौन खरीद सकता हैं इन्हे..किसके पास हैं इतने दाम 
मीठी झिड़की..खट्टा इनकार.. 
थोड़ी सी गुस्सा....ढेर सी मनुहार 
यही हैं प्यार..यही हैं जीवन का सार 
खूबसूरत हैं तुम्हारा प्यार.. 
सहम रहा हैं..सिमट रहा हैं.. 
धीरे धीरे बढ़ रहा हैं........... 
हौले हौले थम रहा हैं.... 
तुम हो गये हो साहसी 
इसलिए तुम्हे मौत से डर नही लगता.. 
खंडक, खाई और गड्ढे..ये तो बहुत छोटे हैं.. 
तुम्हारे साहस के सामने.. 

कहीं पन्ने बोलने ना लगे..




पीले पड़ते जिंदगी की किताब के पन्ने  
ना जाने हमे क्या क्या याद दिलाते हैं.. 
दे जाते हैं नई जिंदगी.. 
जब जब भी हाथ जाते हैं..... 
ना जाने कितनी यादें, कितनी बातें... 
साथ बिताए पल  
इनके अंदर जिंदा हैं..याद जाए गर  
वो पल..एक लहर खुशी की छोड़ जाते हैं.. 
याद हैं..एक बार तुमने कैसे बहाने से मुझे  
चुपके से रास्ते से ही..माँ की क़ैद से छुड़ा लिया था... 
घूम रहे थे हम बारिश मे बेपरवाह..अपने आप से.. 
सच कितना मज़ा आया था..भीगने के बाद  
वो गर्म गर्म..सूप की चुस्की...अभी तक स्वाद  
दिल से गया ही नही... 
और वो दीदी की शादी मे..चुपके से...तुम्हारा  
मुझे देर तक देखना..नज़रे मिलने पे नज़रे हटा लेना.. 
सब मुझे अभी भी ज्यूँ का त्युन याद हैं.. 
ओह ये क्या..किताब के पन्ने तो बोलने लगे.. 
चलो किताब बंद कर दे..वरना गड़बड़ हो जाएगी.. 
जो राज़ बंद हैं बरसो से किताब मे..... 
सब के सब बाहर जाएँगे...... 
एस ख़तरनाक किताब का बंद रहना ही ठीक हैं.. 
ज़रा संभाल के....कहीं पन्ने बोलने ना लगे..