Thursday, June 6, 2013

चाँद और सूरज आएँगे दोनो...आपके बुलाने से...आप आवाज़ देकर तो देखो..

तेरी यादों से मिलती हैं तसल्ली दिल को..
यही राहत कम नही क्या मुझको..

जब हुई महसूस ज़रूरत तुम्हारी तब बुलाया..
भीड़ मे तुम्हारी खातिरदारी करते क्या?

कुछ चीज़े दूर से ही लगती हैं खूबसूरत..
पास से देखने पे असलियत नज़र आ जाती हैं.

बहुत भाग्यशाली हो तुम..जो उतरा तुम्हारे आँगन मे चाँद..
भर दिया चाँदनी से तुम्हे...उसने..तमाम उम्र के लिए..





प्यार का पहला कदम...




 


सच कहु तो बेचैन नही हूँ..मैं
लेकिन क्या करू बुरे बुरे ख़याल जो आते हैं दिल मे..
आशंकित रहता हैं मन ..कहीं बिछड़ ना जाए..
बस यही डर जीने नही देता खुल कर..
सपने भी आते हैं तो ऐसे ही..
जैसे कोई तुमसे मुझे खीच कर अलग कर रहा हो..
बताओ..ऐसे मे प्रेम कहाँ  और कैसे टिक पाएगा..
तुम्हे लगता हैं मैं सवाल बहुत करती हूँ..
नही खोने के डर से ही उभरते हैं नये सवाल..
क्या करू तुम्हे खोकर जिंदा नही रह पौँगी ना..
यही सोच कर काप जाता हैं दिल..

तुम्हारे खत हमे नई राह दिखाते हैं




तुम्हारे खत हमे नई राह दिखाते हैं
सो लिखते रहना तुम हमे नित नये खत..
ना कुछ सही हैं ना ग़लत..
जो मन को अच्छा लगे सो अच्छा...
इसमे कोई तर्क नही वितर्क नही..
ग़लत या सही को छोड़ कर भी एक राह हैं..
प्रेम की राह जो एक बार किसी ने पकड़ ली..
तो कुछ भी नही बचता शेष..
हम तुम मैं मेरा
सब विलीन हो जाएँगे..रह जाएगा सिर्फ़ प्रेम
क्यूँ तुम्हे तो पता होगा ना...मरने के बाद भी
शरीर भले ही चला जाता हैं..लेकिन मोहब्बत यही रह जाती है..
सबके दिलो मे..




Wednesday, June 5, 2013

तुम्हारा दिल भी कान्हा की तरह बार बार जाकर वहीं पे रुकता हैं...

तुम्हारे प्यार मे उसे खुदा नज़र आता हैं..
तभी करती हैं वो तुम्हे इतना प्यार..
अमूर्त, अभिन्न, संसार की सोच से परे...
अनोखा पवित्र प्यार....
तभी नही रह पाती बिना तुम्हे सोचे..
जैसे राधा अधूरी हैं कान्हा के बिना..
वो भी शायद तुम्हारे बिना...............
उसकी सोच का दायरा तुमसे ही शुरू होकर
तुमपे ही जा सिमटता हैं..
यही कारण हैं..तुम्हारा दिल भी कान्हा की तरह
बार बार जाकर वहीं पे रुकता हैं...




Tuesday, June 4, 2013

ईश्वर को भी जब अपनी महफ़िल सजानी होती हैं..

ईश्वर को भी जब अपनी
महफ़िल सजानी होती हैं..
बुला लेता हैं धरती से कलाकार..
सुनता हैं उनसे नये गीत...
लेता हैं उनकी रचनाओ..से मज़े..
कभी सुनता हैं रवि शंकर जी का सितार..
कभी जगजीत जी की ग़ज़ल..
कभी राजेश खन्ना..की एक्टिंग..कभी कुश्ती का मज़ा.. ..
क्या करे बेचारा ईश्वर..
थक जाता होगा बेचारा..
धरती के लोगो की गलिया खाकर..
चंद गिने चुने लोग ही तो
उसे सच्चा प्यार करते हैं
बाकी तो अपने स्वार्थ के लिए
उसका इस्तेमाल करते हैं..
स्वार्थ की पूर्ति होने पे चढ़ाते हैं
सोने का मुकुट..
या फिर छत्र का दान करते हैं..
लेकिन ईश्वर तो ईश्वर हैं...
उसे पहचान हैं सच्चे प्यार की...
सो वो हम कलाकारो से ही
प्यार की उमीद करता हैं..
क्यूंकी कलाकार कभी
आवरण से खुद को नही ढकते..
और जो ढकते हैं वो
सच्चे कलाकार नही होते.

आज शब्दो का अवकाश हैं.



वक़्त पे मिल जाए इलाज तो 
हर मर्ज अच्छा हो जाता हैं..
ना मिले दवा तो 

छोटा मर्ज भी बड़ा बन जाता हैं..

हमारी दुआ से क्या होगा..
तूफान को जब आना होगा तब आएगा..
हा...दुआ करने से खुदा से हमारा 

प्यार ज़रूर बढ़ जाएगा..

आज के अख़बार मे हैं घपला, घोटाला, 
मॅच फिक्सिंग, बलात्कार की घटनाओ का ज़िक्र
चाँदनी तो आती हैं जब ..सब ओर होती हैं खुश हाली...


तेरा रंग हर रंग से जुदा हैं..
तभी तो तू हम सब से अलहदा हैं..(सूरज के लिए )


पा लेते तुम मुझको तो 
तुम्हारी प्यास ना बुझ जाती..
क्या रह जाता जीने के लिए..

सब कुछ यही ना पा जाती..

आज शब्दो का अवकाश हैं..क्यूँ  कि 
तूने छोड़ दी जीने की आस हैं
तू ज़रा सा अपना दिल संभाल..

देख फिर लौट आएँगे तेरे खोए हुए शब्द

Monday, June 3, 2013

वो मज़बूर आदमी...



हर छण उस पे मंडराता हैं 
आतंक का साया
वो आज भी ठीक से 

नही सो पाता....
कभी कभी तो नींद मे ही 

पसीने से सराबोर हो जाता हैं..
आज जब सब कुछ ठीक हैं..

फिर भी वो उबर नही पाया हैं 
अपनी पिछली बातों से...
सच बहुत बुरे दिन भी तो 

देखे हैं उसने..
कभी ठीक से हंस भी ना पाया..
कैसे हंसता बेचारा..

उन दरिंदो ने उसे कहीं का
 ना छोड़ा था..
सब कुछ उसकी आँखो के सामने जो 

लूट लिया था..
पैसा, रूपिया...इज़्ज़त,  आबरू  सब कुछ..
कहने को तो वो...समाज के रखवाले थे...
सो शिकायत भी करता तो किस से..
उसी के सामने...उसी की प्रेमिका....
ओह...मत याद दिलाओ वो मंज़र
..क्या करती छलाँग लगा दी...गहरी खाई मे..
कुछ ना बचा....सब गया...हाय रे ये मनुष्य
तूने ये क्या किया...माँ, बहन, भाभी......
सबको भूल गया....

याद रहा तो बस....उसका औरत होना..
इस से तो अच्छा होता...तू नपुंसक ही होता..
कम से कम लाज़ तो ना जाती किसी की..

(ये कविता उस समय की हैं जब कश्मीर पे आतंक का साया था...आतंकवादी जब जी चाहता था घुस जाते थे मनचाहे घर मे और घर की महिलाओ से अत्याचार करते थे और उनके पतिओं को रस्सी से बाँध दिया करते थे...की शोर मत करना..और जो आतंकवाद्ीओं से बचता था..वो वहा पे तैनात सिपाही लूट लिया करते थे..बेचारे कश्मीरी..तो दोनो और से गये...मारने वाला और बचाने वाला दोनो एक जैसे...जाए तो जाए कहाँ...उस समय घर की ना जाने कितनी  औरतों   ने आत्महत्या कर ली..वो आतंक का साया उनके चेहरो पे आज भी दिखता हैं कश्मीर से लौट कर..)


हर छण उस पे मंडराता हैं आतंक का साया
वो आज भी ठीक से नही सो पाता....
कभी कभी तो नींद मे ही पसीने से सराबोर हो जाता हैं..
आज जब सब कुछ ठीक हैं..फिर भी वो
उबर नही पाया हैं अपनी पिछली बातों से...
सच बहुत बुरे दिन भी तो देखे हैं उसने..
कभी ठीक से हंस भी ना पाया..
कैसे हंसता बेचारा..उन दरिंदो ने उसे कहीं का ना छोड़ा था..
सब कुछ उसकी आँखो के सामने जो लूट लिया था..
पैसा, रूपिया...इज़्ज़त,  आबरू  सब कुछ..
कहने को तो वो...समाज के रखवाले थे...
सो शिकायत भी करता तो किस से..
उसी के सामने...उसी की प्रेमिका....
ओह...मत याद दिलाओ वो मंज़र
..क्या करती छलाँग लगा दी...गहरी खाई मे..
कुछ ना बचा....सब गया...हाय रे ये मनुष्य
तूने ये क्या किया...माँ, बहन, भाभी......
सबको भूल गया....याद रहा तो बस....उसका औरत होना..
इस से तो अच्छा होता...तू नपुंसक ही होता..
कम से कम लाज़ तो ना जाती किसी की..

(ये कविता उस समय की हैं जब कश्मीर पे आतंक का साया था...आतंकवादी जब जी चाहता था घुस जाते थे मनचाहे घर मे और घर की महिलाओ से अत्याचार करते थे और उनके पतिओं को रस्सी से बाँध दिया करते थे...की शोर मत करना..और जो आतंकवाद्ीओं से बचता था..वो वाहा पे तैनात सिपाही लूट लिया करते थे..बेचारे कश्मीरी..तो दोनो और से गये...मारने वाला और बचाने वाला दोनो एक जैसे...जाए तो जाए कहाँ...उस समय घर की ना जाने कितनी लॅडीस ने आत्महत्या कर ली..वो आतंक का साया उनके चेहरो पे आज भी दिखता हैं कश्मीर से लौट कर..)

मज़बूर आदमी वो...