Wednesday, December 18, 2013

माया मृग ji लिए....उनकी कविता "झूठ बोलती स्त्री" से निकलता जवाब

माया मृग ji  लिए....उनकी कविता "झूठ बोलती स्त्री" से निकलता जवाब

कैसे पढ़ लेते हैं आप स्त्री मन को..
कही आप स्वय स्त्री तो नही..
बाँध लेते हैं खुद को उसके मन से..
उसके झूठ से..
कभी कभी तो आप उसकी......
चोरी भी पकड़ लेते हैं.....
मुझे तो विश्वास ही नही होता
जब आज के युग मे स्त्री स्त्री को नही पढ़ पाती..
आप पुरुष होकर कैसे पढ़ लेते हैं...
इतनी कठिन किताब...
"मैं हूँ स्त्री"

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