Saturday, November 23, 2013

शुक्रिया हैं तुम्हारा


सोच रही हूँ आज कुछ
तुम्हारे बारे मे लिखू
हम कैसे मिले ?
कैसे दोस्ती हुई?
कैसे तुमने मुझे मनाया
कैसे अपना बनाया ?
कौन कौन सी शैतानिया की?
कैसे मुझे कभी सताया ?
कभी रुलाया?
और कभी कभी तो अंजान खुशिया दी
जिसके हम हकदार भी ना थे..
तुम्हारी कसम अब सफ़र मे साथ साथ
बहुत दूर निकल आए हैं...
पहले लगता था डर बिछड़ने का
अब उसे भी कहीं दूर पहाड़ियो पे
छोड़ आए हैं...
अब तो हर वक़्त
यही अहसास रहता हैं
तुम रहते हो हर वक़्त मेरे पास
दिल भी तुम्हारे प्यार की खूनकी से
भरा रहता हैं...
अब दिल मे नही तुम मेरी
रूह मे समाए हो.......
तभी तो.....मेरी यादों की ज़द से तुम
कभी कहीं नही जा पाए हो....
शुक्रिया हैं तुम्हारा जो...
तुम मेरी जिंदगी मे आए हो...



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