Tuesday, April 16, 2013

जिंदा लाश


जो किया तुमने हम पर उपकार

उसे कैसे चुकाएँगे मेरे यार

लेकिन एक प्रशण यह भी हैं

तुम्हारे उपकार के बोझ तले 

हम कैसे जी पाएँगे?

उपकार का बोझ 

उतारना भी ज़रूरी हैं

उपकार सहित नही जी पाना 

इस दिल की मज़बूरी हैं

कोई तो निकले इसका हल..

वरना जीना सज़ा बन जाएगा

एक मज़बूर की तरह 

कैसे जिया जाएगा?

कौन होगा ऐसा जो जिंदा लाश 

कहलवाना पसंद कर  पाएगा?

2 Comments:

At April 16, 2013 at 3:12 AM , Blogger Jyoti khare said...


गहन अनुभूति
सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई

आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

 
At May 14, 2013 at 11:16 PM , Blogger अपर्णा खरे said...


shukriya sir..

jaroor Jyoti ji...ayenge...aur permanent mehmaan bhi banenge

 

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