Tuesday, February 19, 2013

जिंदगी किताब ही हैं दोस्त




जिंदगी किताब ही हैं दोस्त
बस कुछ पन्ने तुमने बदल कर
दूसरे लगा दिए हैं
हरफ़ बदल दिए हैं..
नई सी कर दी हैं
किताब की जिल्द
लेकिन हर्फ बदलने से
क्या जिंदगी के मायने भी 
बदल जाते हैं..
जो नही होता अपना..
क्या वो भी अपना हो जाता हैं?
नही ना...
तो पन्ने बदलने से क्या फायदा
जो जैसा उसे उसे वैसा ही रहने दो..
मत बदलो कुछ भी...
सब वैसा का वैसा रहने दो...
देखना जिंदगी खुद पलट कर
तुम्हारे पास आएगी...
मिटा देंगी तुम्हारे सारे गम..
बाग मे तेरे भी खुशिया 
लहल़हाएँगी..

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