Wednesday, June 20, 2012


 
 
इनायत भी करती हैं इज़्ज़त भी करती हैं
गौर से देखे तो तुमसे ही मोहब्बत भी करती हैं

जुदा अंदाज़ हैं उसका..वो सीने मे रखती हैं
उसे बस दिखा नही सकती...

तुम्हे देख कर हो जाती हैं संजीदा
तुम कहते हो शरारत क्यूँ नही करती..

रहते हो उसकी हर गुफ्तगू का हासिल तुम
यही कारण हैं की फूलो को न्योछावर तुम पे नही करती

पीले फूल..



कल रात जब मैं तुमसे सपने मे बाते कर रही थी
तो तुम्हारा वो पीले फूलो का किस्सा याद आया
कितना छिपा कर चोरी से लाए थे वो फूल
आज भी संभाल कर रखे हैं वो पीले फूल..

रात की रानी



सुना हैं तुम्हे रात की रानी पसंद हैं
तुम करती हो जब उस से बाते.......
मैं रह नही पाता
छिप कर सुनता रहता हूँ..
देखता रहता हूँ ...
तुम्हारे चेहरे को जो
शांत सा महसूस होता हैं..बिल्कुल झील जैसा
जिसमे उठने वाली लहरे
रात को शांत सी हो जाती हैं
तुम्हारे चेहरे की भाव भंगिमा भी जब
मुझे तुम्हारे और करीब ले आती हैं
दिखता हैं मुझे की कितना प्यार समाया हैं
तुम्हारे हृदय मे मेरे लिए.....
जैसे रात की रानी ने भी
अपने भीतर अपनी महक
को छिपा रखा हैं..और वही खुश्बू
मुझे भी तुम्हारे प्यार से
सराबोर कर जाती हैं.......

Tuesday, June 19, 2012

एक कसम की खातिर





बहन भाई के प्यार मे
भाभी कहाँ मायने रखती हैं
भाई दे कसम अगर तो
भाभी कहाँ तुडवा सकती हैं...
यही तो होता हैं प्यार
जनम का, तुम दोनो मे
उसे दूसरे परिवार से आई
भाभी कहाँ पा सकती हैं....
पहले देते हो इतना प्यार, आशीर्वाद, हाथो मे लेते हो हाथ
फिर एक कसम की खातिर
छुड़ा चल देते हो.........
कैसे इतने प्यार से
सारे रिस्ते निभा लेते हो.....
आ रहे हैं आँसू, इस से ज़्यादा कुछ ना कह पाउगी..
तुम्हारे भैया से भी शायद अब
उस तरह ना बतिया पाउगी..
माफ़ करना दी गैर हूँ ना....कितना भी कर लू..तुमको कहाँ पा पाउगी ..
तुम अपने भैया की प्यारी बहन जो ठहरी........और मैं बाहर से आई नारी........


 
 
कच्चा सूत ...........नही प्रेम की डोर हैं ये
बाँधा हैं प्रेम पाश मे...
बरगद के पेड़ नही घना बाहुपाश हैं तुम्हारा
लिपटी रहू उम्र भर..यही सोचु हर दम मैं
देखो ना ....एक कोमल धागा भी क्या कर जाता हैं
बंधन मे बाँध कर एक दूसरे को....यू ही
खुद कहीं खो जाता हैं.....कभी आया हैं ख़याल
क्या बाँध कर कोई इस तरह कभी कहीं जा पाता हैं....


पिता सबसे अहम



कभी सख़्त कभी नरम
मेरे पिता सबसे अहम
उनका मान हमारा मान
वो हैं हमारी जान
करते हैं प्यार हमसे
लेकिन जताते नही हैं
मा की तरह कभी भी हमे
दुलराते नही हैं
फिर भी लगते हैं प्यारे
क्यूँ की जब हम राह से भटक जाए तो
सबसे पहले जागते वही हैं
सच्चे मार्गदर्शक हमारे
हमारी भी आँखो के तारे
नही दे सकते हम उनको कुछ भी
फिर भी हैं वो सदा हमारे..........Love u papa...

Monday, June 18, 2012

बूढ़े पेड़ की करुणा.....



जिंदगी की सांझ मे भी करुणा हैं
जो बचा हैं मेरे पास
ले जाए मेरा ही कोई खास
भले ना डाले मुझे जिंदगी भर घास
मैं यू ही रह लुगा
जिंदगी ही कितनी बची हैं
अब भी क्या मुझे जीने की पड़ी हैं
नही हैं फल, फूल तो क्या
लकड़ी तो बची हैं
ले जाओ मेरे बच्चो
आज नही तो कल तुमको
फर्निचर की ज़रूरत पड़ी हैं

बादल की नदी ........तुम्हारा साथ
चाँद की कश्ती ..........तुम्हारा हाथ
चले बादलो के उस पार.....साथ साथ
बस यू ही...निकल जाए सबकी पहुच से दूर
ना रहे हम दोनो यू मज़बूर...........
नया आशिया बसाए.......
चलो भीग जाए...........प्यार की बारिश मे


सूरज ने ली अंगड़ाई हैं
मौसम पे खुमारी छाई हैं
फूल भी अब मुस्काये हैं..
जीवन मे नये रंग आए हैं..
उठो साथियो देखो दिन चड आया हैं....
अभी भी तुम्हे कैसे सोना याद आया है..शुभ दिवस...गुड मॉर्निंग..


रात का सफ़र ............तन्हा ही सही
कट तो जाएगा, चाँद हमारे लिए
खुद चलकर आएगा....
नही बचेगा गम हमारे भीतर
जब वो हमसे बतियाएगा......
खुल जाएगी सारी गाँठे
मन ही मन वो मुस्कुराएगा
तन्हा चाँद हमे देख कर
भागा भागा आएगा........
(चाँद हमारा सच्चा दोस्त जो ठहरा, बचपन से हैं हमारा रिश्ता गहरा, कभी बनाया मामू, कभी प्रीतम आज दोस्त बन गया गहरा)


 
जिंदगी को तुमसे प्यार हैं
तभी करीब से गुजर जाती हैं..
वो तो पगले गला खखार कर तेरा ध्यान
अपनी और दिलाती हैं...
तुम हो की उसके आने का इंतेज़ार करते हो
अबकी बार आए तो कस के जकड़ लेना
छुड़ा ना पाए अपना हाथ
यू उसे पकड़ लेना......
अपनी कसम देकर रोक लेना
नही रुके तो साथ चल देना...



चलो उसे अपने पे विश्वास तो आया
वो किसी से प्यार करती हैं............
वरना अब तक तो पूछने पे मुकर जाती थी
सच को कभी लबो तक नही लाती थी
उलझे बालो मे लिपटे अपने ......
मॅन को नही सुलझा पाती थी...
काली घटाओ को देख उसका दिल
आशंकाओ से भर जाता था....
खामोश शामे भी उसे डराया ही करती थी..
बिस्तर की सिलवट भी उसे
प्रियतम की याद दिलाया करती थी..
बेचारी क्या करती ...............
खुद को इसीलिए मसरूफ़ किया..
ना कभी खुलकर अपने प्रिय का नाम लिया
उसे पता हैं ज़्यादा किसी ने उसे उधेड़ा
तो उसकी आँखो का समंदर सैलाब बन उतार आएगा....
जिसमे डूब जाएगी वो.........हमेशा के लिए


 
रिश्ते जो उम्र भर रहे रिसते
देते रहे टीस, चोट और चुभन
ताउम्र रहे डसते .....
निभाओ रिश्ते तो दुख मिलता हैं
ना निभाओ तो अपना मन दुखी होता हैं
कैसे पार पाए इन रिश्तो से
अब तो हमे जीना भी दुश्वार लगता हैं...

करते हैं प्यार सबसे
समझते हैं सबको अपना
नही हैं कोई उँचा नीचा
जिसको लगेगा हमारा प्यार सच्चा
वो यही टिक जाएगा
बाकी झूठा तो यहाँ टिक भी ना पाएगा
अब इस से ज़्यादा कुछ नही दे पाएँगे
अब चाहे फिर बचे या ना बचे रिश्ते..
क्यूँ रहे ये उम्र भर रिसते...........



श्री राकेश मुथा जी की कविता से प्रेरित


रुनझुन मे जो गीत समाया
घर मे जो संगीत समाया
दिल मे उसके होने का जो
आभास हैं आया......
सिर्फ़ छत, फर्श मकान नही
हर शै मे मौजूद........उसे हैं पाया
चाहे कैसा मौसम आया..
दुख का हो बादल छाया
हर जगह मैने उसे पाया
हर जगह...बन कर आया वो मेरा साया..
बस साथ हूँ...तभी आबाद हूँ..उसे याद हूँ...


तुम्हारे और उसके
सोचने मे बहुत अंतर हैं
तुम सोचते हो दिल से,
तभी हर वक़्त महसूस कर पाते हो
वो सोचता हैं दिमाग़ से,
तभी तुम्हे घर नही ले जा पाता हैं...
दोनो को करनी होगी एक सोच
तभी मिल कर रह पाएँगे
नही होंगे दोनो वहाँ फिर भी
"एक दूसरे मे"
एक दूसरे को पाएँगे.