Saturday, April 21, 2012


मुझको याद है वो पल

जब कहा था ----
सब्ज - ए- मखमल पर 
लरजती सी आहटे,
शाही कदमो के 

अहसास हुआ करते है !
मुमताज -ए -अश्क-ए -गोहर 

शफाक चांदनी में ,
शबनमी कतरों में वो 

जिया करते है !

---आज भी सब याद है -----...

यादो को कारवा को आगे ले जाते हैं
फिर से वही सब दोहराते हैं
नही हुए हो तुम बुड्ढे
अभी हम भी जवान नज़र आते हैं
चलो छेड़े तान प्यार की...
प्यार का सुर लगते हैं....
अब तो हैं बहुत से दोस्त साथ....
उनसे भी तबला बजवाते हैं.....
नया सफ़र नई डगर.....
चलो नया जहाँ बसाते हैं

तुमको देख लिया
खूब -----
जान गया भी ----
अब तो परखने की
बारी है -----
ऐ- दोस्त मेरे हमदम
आज खुद -----
आइने को हटा
संग चलने की तैयारी हैं

लम्हो मे गुज़रे पॅलो का ज़िक्र
तुम्हारे बिना कैसे आ सकता हैं
पैरो के छाले..जो दिए जंगल ने
उन्हे कौन सहला सकता हैं?
तूफान भी संभाल नही सकता
नन्हा सा दिया...जो मिल कर
जलाया था कभी..............
आओ तो हाथ लगाए
मिल कर दिए को बचाए.....
कुछ तुम्हारी ......
कुछ अपनी सुनाए.....
मिल कर फिर से.....
नया स्वप्न महल बनाए..

लाजो हया शर्म
हमारा गहना हैं
कहर तुमपे अब और
नही करना हैं
खोल दिए हैं दरवाज़े दिल के
शानो शौकत से
तुम्हे दिल मे रहना हैं

मौसम ने पायल खनकाई हैं
लेकिन ये क्या ........किसी को भी
आवाज़ नही आई हैं..
मौसम का सुरूर हैं
छाया सब पे नूर हैं
राख की बात क्यूँ करना?
चलो फरिश्तो..............
नई ग़ज़ल कहते हैं
यार की बात कहते सुनते हैं

पीपल का पेड़
उसपे लटका हमारा अक्स
ब्रह्म राक्षस नाम मिला
लेकिन उसे भी भान हैं
कहाँ जाना हैं
किसके लिए जाना हैं
उसका भी मार्ग निधारित हैं
भटके तो हम हैं
जाना कहाँ जाते हैं
जाते कहाँ हैं?
ज्ञान हैं..लेकिन मार्ग अवरुद्ध हैं
क्या यही हैं पीपासा...
मंथन की सतह पे...
एक बार फिर...

Friday, April 20, 2012

आँधियो ने बुझा दिए
चिराग तो क्या
दिल की रोशनी
तो अंदर हैं
मत टूटने दो हिम्मत
हर सवाल का
जवाब भीतर हैं
मंज़िलो भी सामने
नज़र आ ही जाएगी
अगर जुस्तजु
भीतर हैं..मत घबरा
ना ही कर बंद आँखे
तूफान के डर से..
तेरी जिंदगी की डगर...
तेरे ही दर से हैं........
भरोसा रख...


रिवाजो को कर किनारे
मेरे पास आ जाओ....
मत खेलो खेल कोई
मज़बूरी को हटाओ
दर्द का रिश्ता माना
बहुत गहरा हैं.......
तुम्हारी आँखो के कतरे की कसम
हम क्यूँ रखे .....
दर्द पे रिवाज़ो का पहरा...

Wednesday, April 18, 2012

सच कह कर....


सच कह कर खुद को ही, खुद से किया पराया
मन रह गया गया सामने, देह ने कहीं और डेरा जमाया
होती आज वो अपनी, मन ने बरसो बाद यही दोहराया
आज भी आँगन सूना था..हर कोना रीता रीता था
दिल के किसी कोने मे आज भी उसकी जगह सुरक्षित थी
उस जगह को कोई नही भर पाया था, यादों का गट्ठर साथ था..
शाम का समय भी था...थॅका हुआ शरीर था
सब पहले जैसा था लेकिन तुम नही थी...
तुम्हे लौटा जो दिया था मैने...सच कह कर....

Sunday, April 15, 2012

यादों की किताब

यादो को एक किताब बना ले
जब जी चाहे खोल के पढ़ ले
अपने सिरहाने उन्हे जगह दे
आपको छोड़ कर कही नही जाएँगी
कभी कभी तो खूब सताएँगी,
कभी हसाएँगी, कभी रुलाएँगी
लेकिन वादा हैं उनका आपसे
हमेशा साथ निभाएँगी...........

मैं नदी हूँ लेकिन इसमे कल कल तेरी हैं
मैं हवा हूँ लेकिन इसमे चंचलता तेरी हैं
अगर मैं प्रशण हूँ तो इसमे भी सार्थकता तेरी हैं
तूने मुझे दिए हैं आयाम, कर सकु कुछ सार्थक प्रशन
उत्तर से क्यूँ घबराता हैं, उत्तर तो मुझे आता हैं......
तेरी कोई परीक्षा नही....तू निसचिंत रह...


हवा भी तुम्हारी
आकाश भी तुम्हारा
पंख भी तुम्हारे
गति भी तुम्हारी
जब सब तुम्हारा हैं तो थकान कैसी
 

प्यार से अस्मिता गर्वित होती हैं
धूसरित नही होती
जो भी समझो बंधु सखा मित्र पिता
सहयात्री...हर रूप मे प्यार ही करना हैं..
तुम्हारे साथ यू ही बढ़ना हैं..
 


रंगो मे क्यूँ खो गये
अरे आप तो आज
फिर धोखा खा गये
फूल वासना नही
प्रेम का प्रतीक हैं
आप क्यूँ भटक जाते हैं
आप सिर्फ़ प्रेम करो...
प्रेम को हर जगह महसूस करो
तृष्णा खुद ही लौट जाएगी
आप बुलाओगे फिर भी
नही आएगी..........
करो मेरी बात का भरोसा
रंगो से नही...खुद से प्यार करो
अपने प्यार पे एतबार करो.. 



एक गठरी मे हमारा घर

एक गठरी मे हमारा घर
ये माँ ही दे सकती हैं
और हम है की उस घर मे
नौ महीने भी बड़ी मुश्किल से बिताते हैं
कभी कभी तो इतना गुस्सा आता हैं
कि वही से माँ को भी लतियाते हैं
सारी देह मिलने को आतुर रहती हर वक़्त
उनसे मिलने के लिए.......
माँ भी बाँट जोहती हैं गठरी खुलने की
कब होगा नन्हे लाल गोल मटोल से मिलन..
सोच कर ही बढ़ जाती हैं उसकी सिहरन

इंद्र धनुष

माना इंद्र धनुष मे रंग मेरे हैं
गुलाबी ,लाल ,सुनहरा ,सिंदूरी ,रक्तिम
जो मेरी आभा को दम्काते हैं
मेरे चेहरे पे भरे किसने हैं
इंद्र धनुष का अर्ध चंद्राकार रूप
मेरे प्यार के घेरे जैसा हैं
जो तुमने डाला हैं अपनी बाहों से
मेरे गले मे..........................
प्रीत भी तुम्हारी हैं, खुश्बू भी तुम्हारी हैं
जो तुमने हम मे भर डाली हैं
वरना कहाँ थी ताक़त हमारे भीतर
दुनिया से लड़ने की,
तुम्हारे संग चलने की...
तुम्हारा अपनापन ही हैं जो मुझे
यहाँ तक खीच लाया हैं.........
तुम्हारे एहसास ने ही हमारा
हमसे मिलन कराया हैं
और तुम हो कि तमगा
मुझे दिए जाते हो....
जिंदा रहने का कारण भी
हमे ही बताते हो...कितना चाहते हो मुझे
मेरी जान से भी ज़्यादा.....
नही नही अपनी जान से भी ज़्यादा

सखी तेरी याद आती हैं..

चोट चोट पे मिलन की उत्कंठा
आह कितना जोश भरती हैं मुझमे
नही देती हैं दर्द पैरो की फटी बिवाईया
जब उन्हे तेरी हूक उठती हैं
चोट निराशा दुख सब मुझे तेरे
सम्मोहन मे बाँधे रखते हैं
अपनी पीड़ा से दूर लिए जाते हैं
मैं मस्त हूँ अपनी मस्ती मे
मिलन की घड़ी पास जो बुलाती है...
मिलन की आस अब और भी
घनी हुई जाती हैं...
सखी तेरी याद आती हैं..

मेरी भी आदत सी हो गई हैं

मैं कभी नही सीख पाउगा........खाली पन्नो को पढ़ना
क्या करूँ खाली पन्नो मे
तुम नज़र आती हो
क्या करूँ तुम्हारी आवाज़
हमे बार बार बुलाती हैं
और तुम हो की तुम्हे लगता हैं हमे  
तुम्हारी आवाज़ ही नही आती हैं
तुम्हारी भटकती आँखो मे
मैं खुद को ही पाता हूँ और
तुम कहती हो तुम्हे समझ नही पाता हूँ..
तुम्हारी हाथ की पाँचो उंगलियो से
बाँधी गई ढीली मुट्ठी हमे ये बताती हैं कि
तुम हमारे साथ हाथ मे हाथ डाल कर
चलना चाहती हो..रहना चाहती हो हमारे साथ हमेशा हमेशा
पता हैं तुम्हारी सधी उड़ान भी
मुझे देखते ही ना जाने कैसे कपकपा जाती हैं....और तो और
कभी कभी तो हमरे लिए प्यार से बनाई गई
चाय की प्याली भी तुम्हारे हाथ से छूट जाती हैं..
मैं ना ...मैं ना ...तुम्हारे ताप को पकड़ पाता हूँ,
आँखो मे छिपे लाल डोरे..समझ जाता हूँ
लेकिन क्या करू ................यार ....मेरी भी न
आदत सी हो गई हैं, तुम्हे छेड़ने की..
तुमसे लड़ने की...तुमपे अपना हक़ रखने की....


मैं भी नही थी.

अभी कल ही तो समेटा था समान
आज फिर फैला दिया
अपनी वॉर्डरोब को
फिर से क्यूँ बिखरा दिया
मैने सहेज के रखी थी तुम्हारी चीज़े
अलग अलग किया था हर समान
कमीज़ पे कमीज़े,, मोज़ो पे मोज़े
पतलून पे पतलून, बनियाइन पे बनियाइन
सब बिखरा दिया
मेरी मेहनत पे पानी फिरा दिया,
ये तो चलो ठीक हैं लेकिन
लॉकर के भीतर रखे सुर्ख जोड़े मे लिपटे
खत क्यूँ निकाले .....और तो और
खतो के साथ मुझे भी निकाल लिया
जैसे ही तुमने उनपर उंगली फिराई
मैं बाहर आ गई, लगी तुमसे बतियाने
अपना दर्द तुमसे छिपा ना पाई
आँखो ने कुछ ऐसा किया कि
एक शब्द भी आँसू के कारण
समझ ना सकी....बस तुम्हारा चेहरा ही देखती रही
तुम भी क्या करते
तुमने भीजल्दी से समेट कर
सब पहले की तरह रख दिया
क्यूंकी अगर ज़्यादा देर हो जाती
तो आँसू का सैलाब निकल पड़ता
और तुम उसमे डूब जाते..........
तुम्हारा ढूँढना मुश्किल हो जाता..
मैं भी नही थी.. जो तुम्हे निकाल पाती


जिंदगी हमे किस मोड़ पे ले आई..

चलो एक बार फिर से
वैसे ही हो जाए
जैसे हम पहली बार मिले थे
निकाली थी पहचान
आहिस्ता आहिस्ता
डरते हुए पूछा था......
क्या करती हैं आप?
और मैने भी सकपका कर
जवाब दिया था ..पढ़ती हूँ...
मुझे क्या पता था.. कि
आँखो को पढ़ने की
आदत लग जाएगी,
हर वक़्त तुम्हारी मुस्कुराती आँखे ही
याद आएँगी...
जो मुझे मुझसे ही..कहीं दूर.........
बहुत दूर.................................
तुम्हारे पास ले जाएँगी........और
मेरी पढ़ाई ही मेरे इतने .............काम आएगी..
तुमको पढ़ते हुए मेरी जिंदगी..........
कैसे, कब बीत जाएगी..
तुम्हारे साथ नई पहचान हमे
इस मोड़ तक ले आएगी..




हमारा प्यार सच्चा हैं..

तुम बार बार पूछते हो
क्यूँ करती हूँ तुमसे प्यार
अपने प्यार पे प्यार की
मोहर लगवाना चाहते हो
तुम्हे क्या पता,
प्यार किसी मोहर का मोहताज़ नही
ये तो जब हो जाता हैं तो..
कोई इसका जवाब नही
लफ़्ज कहाँ कुछ कह पाते हैं,
शब्दो के भी मायने खो जाते हैं
बचता हैं केवल भरोसा, विश्वास,
जो प्यार को सींचता हैं,
पोषित करता हैं.....फलने फूलने देता हैं
अलग नही होने देता हैं,
भर देता हैं खुद मे विश्वास
हमारा प्यार सच्चा हैं..
हमारा प्यार जहाँ मे
सबसे अच्छा हैं..