Friday, April 6, 2012

हाँ मैने भी झूठ बोला हैं

        हाँ मैने भी झूठ बोला हैं
        ना जाने कितनी शराराते की हैं
        ना जाने कितना भोलापन खोया हैं
        हाँ मैने भी झूठ बोला हैं
        याद हैं मुझे जब एक बार
        अम्मा ने पूछा हमसे
        बिटिया तुमने आचार
        चुरा कर खाया हैं???
        मैने कहा नही........
        पर अम्मा तो आख़िर हमारी अम्मा!!!
        झट से छत पे रखी बर्नी के
        चारो और गिरा तेल देख कर समझ गई...
        जो कान मरोड़ा............हाए.........
        हमे अभी तक याद हैं............
        बोली......... खाया था तो ठीक था
        झूठ क्यूँ बोला..हमे भी लगा
        नाहक झूठ बोला........
        दूसरी बार याद आता हैं
        जब बाबा ने एक दिन हमे
        पान ख़ाता देख कर हमसे पूछा था
        बेटा पान खाया हैं क्या?
        मैने नही मे सिर हिलाया
        वाह री बदक़िस्मती लाल रचे होठों ने
        सारी पॉल खोल दी...............
        सारा किस्सा कह सुनाया
        तब बाबा ने समझाया ......
        छोटे बच्चे पान नही खाते
        तब भी लगा बेकार झूठ बोला..
        अब ना बाबा हैं . . ना पान मे वो
        चोरी का स्वाद ........
        ऐसे ही ना जाने कितने नन्हे क़िस्से  
        आज भी जहन मे घूम जाते हैं
        जो कभी हँसते हैं ...कभी पलको मे
        आँसू ले आते हैं...क्या दिन थे वो...
        जब बेपरवाह हो दौड़ते थे..
        जब मन होता था झूठ बोलते थे
        फिर झट से सॉरी भी बोल दिया करते थे... 



Wednesday, April 4, 2012

मुझे मेरी तरह महसूस करो

पड़ोस का बासमती?
हाहहाहा........
आज भी तुम
बिल्कुल नही बदले
याद भी करते हो तो
खाने की चीज़ो की तरह
अब तो संभल जाओ..
अब नही पकते बासमती
सबके बस की बात नही रही
बासमती खाना.....
मुझे मेरी तरह महसूस करो
जैसे मैं तुम्हे आज भी करती हूँ!!!!!!

Tuesday, April 3, 2012

थेओरी और प्रॅक्टिकल

प्रशन -
"एक जीवन जो कविता में रचा जाता है
एक जीवन जिससे कविता रची जाती है
दोनों जीवन क्या भिन्न होते हैं?

उत्तर -
जो जीवन कविता मे रचा जाता हैं
वो कल्पना का अंग होता हैं
उसमे कवि की सोच होती हैं
काश ऐसा होता ...काश वैसा होता
यू करते, यू चलते, यू रहते
यू ही साथ रह कर अपना जीवन सवारते
खुशियो को निखारते,
लेकिन उसमे कोई शक्ल नही होती हैं

वो जीवन जिस से कविता रची जाती हैं
वो जिंदा होता हैं साँस लेता हैं, महसूस होता हैं
शब्द वही होते हैं लेकिन मायने बदल जाते हैं
आँखो मे हर वक़्त एक चेहरा होता हैं
चेहरे से प्यार होता हैं, ज़ुबान खामोश हो जाती हैं
आँख सब कह जाती हैं..प्यार रूबरू होता हैं
एक शब्द मे कहे तो पहले वाला थेओरी
दूसरा प्रॅक्टिकल होता हैं....

Monday, April 2, 2012

चंद शेर

मेरे मुस्कुराने से आप जी सकते हैं,
तो मुझे मुस्कुराने से कोई परहेज नही
लेकिन क्या खाली पेट सोएंगे,
महगाई के दौर मे खाना कहाँ से आएगा?



आज कल यही होता हैं, फिर तू क्यूँ रोता हैं तू कोई जमाने से अलग तो नही
कोई भी ले ऋण किसी तरह का, उसका तेरे जैसा ही हाल होता हैं



तुम रार, तक़रार जिसे कहते हो
ये मेरा प्यार हैं, तुमको अब भी नही क्या
मुझपे ऐतबार हैं, कैसा ये प्यार हैं??



लाजवाब तुमने ही तो बनाया हैं
वरना हम थे इन्सा किस काम के???



मत खुश हो इतना, मत मुस्कुरा
इस पे भी क़यामत आ सकती हैं
देख लिया सरकार ने जो मुस्कुराते
स्माइल टॅक्स लगा सकती हैं



बेमोल को अनमोल करने हुनर सीखा हैं
क्या बताउ, तुझे सच कहती हूँ
आज फिर से मेरे हाथ मे गीता हैं..



मत कहो चुप रहो...वरना सब सुन लेंगे..और हम कही के नही रहेंगे


कही मिलो...कैसे भी मिलो....लेकिन जब भी मिलो...प्यार से मिलो..एक जुट होके मिलो..
आँगन मे बिखर जाए पहले जैसी खुशिया मेरे यार कभी तो मिलो..



बहुत अच्छा गणित हैं तुम्हारा
खुद को जोड़ लिया हैं हमसे
दुनिया को घटा डाला हैं.......
सच....तुम्हारा ये गणित हमे बहुत भाया हैं



खिताब पाने के बाद सब ऐसे ही हो जाते हैं
तबीयत हो जाती हैं नसाज़, दोस्त भूल जाते हैं



ये भी उसकी ही एक अदा हैं
क्यूँ होते हो परेशान ..
चाँद आज भी तुम पे फिदा हैं



पहेली अबूझ होती हैं, ये सच हैं
लेकिन सहेली का दोष, समझ नही आया हैं


पास आकर गुजर जाना भी हमे महका जाएगा
तुम्हे क्या पता हर झोका तुम्हारी खुश्बू लाएगा
 

कलम को तलवार बना देंगे
दुनिया को दिखा देंगे
नही थकेंगे, नही थमेगे
कर देंगे सब खाक बेईमानी
 

बर्फ पिघली सन्नाटा उबरा मच गया शोर
अब इंसान इंसान ना हो कर बन गया मशीन
कुछ नही रहा सुन ने लायक, समझने लायक
छिड़ गया अब घमासान चहु ओर
 

खुल गये हैं द्वार दिल के

सारे रास्ते बंद थे
खिड़किया दरवाज़े भी बंद थे
नही था किसी का आना जाना
सब तरफ प्रतिबंध थे
लगाई होगी आवाज़ बहुत
लेकिन नही पहुच सकी मुझ तक
क्यूंकी तुम्हारे लिए मेरे मन मे
कई तरह के द्वंद थे
जिन्हे खोलना ज़रूरी था
तुमसे बोलना ज़रूरी था
वरना तुम्हारा प्यार ...
बह जाता पानी की तरह
और रह जाता ख़ालीपन
किया द्वंद को दूर अब मैने
तुमसे मिल कर...
खुल गये हैं द्वार दिल के
जो अब तक बंद थे..