Thursday, March 29, 2012

प्रेम मे अपशकुन.......

प्रेम मे अपशकुन.......
मैने तो इतना ही
अर्थ लगाया हैं
समझ लो जुदाई का
वक़्त आया हैं
टूटी चूड़िया भी उस वक़्त
कुछ नही कर पाती हैं....
जब पिय से दूर
जाने की बात आती हैं
झरते हैं आँखो से आँसू
जब उनकी याद आती हैं.....
माँ ने कहा हैं तो
ठीक ही होगा....
माँ का अनुभव
मुझसे ज़्यादा जो हैं
टूटी चूड़ियो से
रिश्ते नही टूटा करते...
वो तो हमेशा यादों मे हैं रहते
चाह कर भी
नही कर सकता
उन्हे कोई जुदा
वो तो खुद
खुदा की तरह होते....



पगली लड़की

वो चाहती थी टूट कर मुझे
उसकी हर अदा मे
प्यार समाया था
नही रह सकती थी
एक पल भी मेरे बगैर
जाने प्यार का कौन सा नशा  
उसपे छाया था.....
हर  लम्हा मुझमे ही खोई रहती,
मुझसे बाते करती....
मुझसे ही लड़ती रहती...
यही नही .....जब मैं नही 
होता सामने तो
मेरी तस्वीर को देखा करती......
ना जाने कौन सी 
मिट्टी से बन कर आई थी
वो लड़की भी जैसे
मेरी रूह मे उतर आई थी
पागलपन की हद तक 
चाहती थी मुझे
नही देख सकती थी मुझे........
किसी के साथ मुस्कुराते हुए....
हो गई थी अपनी 
सब खुशिया पराई उसे
पगली सी थी .......जो मेरे 
जहन मे समाई थी
सारी दुनिया उसे 
पागल कहती...
वो थी कि हरदम 
खुद से उलझी रहती
ना जाने क्या था उसमे......
जुनून बन के 
मेरे साथ चली आई थी....
वो लड़की भी जैसे 
मेरी रूह मे hi उतर आई थी




Tuesday, March 27, 2012

हौसला दे रही थी...

अनवरत चलते रहे..
 दीए जलते रहे..
 डाला ना जाने कितना तेल
 फिर भी ना कर सके
 वक़्त का खुद से मेल
 उम्र के साथ साथ
 लालटेन के शीशे भी
काले पड़ गये
 फिर भी जीवन मे
उजाले ना हुए..
 बस मधिम सी
आशा की किरण
 अब भी बाकी थी..
 जो दे रही थी...हौसला
 जीने का..





संवाद...मेरे प्रियतम

ओ प्रियतमा (कविता) 
Maya Mrig ji ki kavita.......apke liye

तुम्‍हारे चेहरे पर गहराती झाइयां
तुम्‍हारे गुज़रे हुए कल में
झेली हुई धूप के निशान हैं
सूरज की एक एक किरण से
रोशनी के लिए
कितना लड़ी हो तुम....

...और तब से लगातार
उकरता रहा तुम्‍हारा इतिहास
चेहरे के सुनहरी पृष्‍ठ पर।

इन्‍हें छिपाओ मत प्रिय
दुपट्टे से ढंकने की
कोशिश ना करो

मेरी प्रियतमा !
मैं
तुम्‍हें
तुम्‍हारे पूरे अतीत सहित स्‍वीकार करता हूं...।

Meri kavita.......apke liye


मेरे प्रियतम                        
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तुम्हारी बात सुनकर
मेरी आँखो मे आ गये आँसू
तुमने मुझे किया स्वीकार
मुझे लगा मेरे नये दिन आ गये

मेरी झाइयो मे भी गहराता
मेरा अनुभव हैं
जो मुझे मेरी जिंदगी ने दिए हैं
तुम्हारे साथ रहते हुए
मुझे मिले हैं

तुम्हारा साथ था तो नही
लगी सूरज की तपन
नही लगी कोई थ्कन
बल्कि बढ़ा दी तुमने
मेरी लगन.............

थाम कर तुम्हारा हाथ
दूर तक जा सकती हूँ
तुम्हारे साथ तो सात
जनम बिता सकती हूँ

एहसान हैं की तुमने
मुझे मेरी तरह स्वीकार किया हैं
मेरे अतीत पे भी
तुम्हारा ही नाम लिखा हैं....