Thursday, January 19, 2012

जाड़ा बहुत भाता हैं


चाय की चुस्की और रज़ाई
और उसपे तुम कुछ कुछ अलसाई
मेरा भी बस चुपचाप तुम्हे देखे जाना
मन को रोमांचित कर जाता हैं
सच मे जाड़ा बहुत भाता हैं

घड़ी भागती तेज़ रफ़्तार से
तुमको भी हैं ऑफीस जाना
छोटा बच्चा रो रो कर जागता
मॅन बहुत घबराता हैं
सच मानो फिर भी
जाड़ा बहुत भाता हैं

सारे काम रुक से जाते हैं
जब सर्दी मे हाथ ठंडे हो जाते
ऐसे मे तुम्हारा नरम नाज़ुक हाथ
बहुत याद आता हैं.....
सच कहूँ जानम जाड़ा बहुत भाता हैं

मौसम के ढंग निराले हैं
चाचा ने कह डाले हैं
भुवन भास्कर जब हैं आते
मेरे चाचू परेशन हो जाते
ओढ़ रज़ाई सो जाते हैं
जाड़ा बहुत सतावे हैं


होली के आते ही चाचा
हो जाते मतवाले हैं
चाची संग खेले होली
बच्चो को डाट पिलावे हैं
मौसम के रंग निराले हैं

 
सावन का महीना
चाचा जी को बीमार कर देता हैं
चाची चली जाती हैं मायके
चाचा का ख़याल कोई ना रखता हैं
तब चाचा जी ने नये खेल निकाले हैं
ताश और शतरंज से
अपना दिल बहला डाले हैं
मौसम के हैं ढंग निराले।।










मोह माया


मित्र का सवाल
चर्चित बाबा के चक्कर में 
नटखट बाला हुई बीमार,
बाबा हैं साधू - सन्यासी
वो पूरी कलयुगी नार.....
बाबा जब भी धुनी रमाते
वो हो जाती है हाज़िर,
इधर - उधर से ढांप - ढूंप के
करने लगती कविता वार,
फिर भी बाबा ना बोलें जब 
ध्यान तोड़ती सीटी मार.....
आप लोग ज्ञानी - ध्यानी सब
जल्दी कोई उपाय बताएं,
नहीं तो बाबा चले हिमालय
छोड़ - छाड़कर ये संसार.....

मेरे द्वारा सुझाया गया उपाय
बाबा तो सबको उपाय बतलाते
उन्हे क्या कोई बताए उपाय..
सबको मोह ममता वो छुड़वाते
उनकी कौन छुड़ाय......
नटखट बाला से बचना 
असंभव सा नज़र आता हैं..
क्यूंकी...कामिनी, कंचन, कीर्ति
इन तीनो से बचना प्रायः नामुमकिन
सा हो जाता हैं....
फिर भी बाबा चाहे तो अपनी
समाधि मे चले जाए.....
कन्या जब थक के चूर जाए...
उन्हे भूल जाए तब ....
समाधि से वापस आए..
वरना बाबा की सारी मेहनत 
पानी मे चली जाएगी...
कन्या उन्हे फिर से जनम मरण
के चक्कर मे फसाएगी...
संसार हैं मिथ्या तो....
कन्या भी मिथ्या हैं...
क्या फसना कन्या मे..
ये तो बाबा के योग की परीक्षा हैं..
बाबा गर पास हुए तो भगवान मिलेगा..
गिर गये कन्या के चक्कर मे तो 
बार बार जनम लेना पड़ेगा.....

इस कविता के द्वारा मुझे मेरा एक मित्र मिला...इसलिए ये कविता मुझे बहुत प्रिय हैं

Tuesday, January 17, 2012


जो हैं सबके खुदा जा रहे हैं स्कूटर पे 
शामिल होने किसी प्रतियोगिता मे 
उन्हे क्या पता जिंदगी की सारी 
प्रतियोगिता वो ही तो आयोजित करते हैं 
लोगो की आँख मे धूल भरने को 
खुद प्रतियोगी होने का ढोंग करते हैं 
कल फस गये बेचारे इंसानो के चक्कर मे 
देखा क्राइस्ट का भेष बना के चर्च के आगे खड़े थे 
सोच रहे थे प्रार्थना के बाद जब सब गुजरेंगे 
मुझे देख खुश हो जाएँगे...
मेरे लिए हमेशा रोते रहते हैं 
देखते ही खुश हो जाएँगे 
लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा 
लोग बाहर आए उन्हे देखा और 
कहने लगे ढोंग करते हो 
पहन कर क्राइस्ट की ड्रेस हमे ठगते हो 
बेचारे देते रह गये दुहाई मैं सच्चा हूँ 
लेकिन किसी ने नही माना........ 
लोग बोले मैने खुद से किया हैं उन्हे क्रूसीफाइ 
कैसे मान ले कि तुम असली हो 
अब उस जमाने मे कोई आइ डी प्रूफ तो 
होता नही था जो वो दिखलते 
बेचारे तरह तरह से रहे ...उन्हे समझाते 
फिर भी किसी को समझ नही आया 
उनको उल्टा स्वर्ग का रास्ता दिखलाया 
आप आप भी ना पड़े लोगो के चक्कर मे 
असली वेश मे रहे, ना पड़े मुफ़्त के चक्कर मे 
अगर खुदा ने भी अपना असली रंग दिखाया तो 
हम सब भी चक्कर मे पड़ जाएँगे 
उसके एक उंगली घूमते ही 
तीनो लोक दिख जाएँगे इसलिए 
खुदा आप भी मुझे माफ़ करना 
अपना हरदम हम सब पे इंसाफ़ करना

कुछ भाव

हज़ार सवालो का एक जवाब होता हैं
बिना अल्फाजो के भी दिल का दर्द बयान होता हैं
गर नही हो लफ़्ज तो भी सब कह सकते हैं
क्यूंकी आँखो के पास हर जवाब होता हैं

मैं नही दे सकती तेरे हिस्से तुझको
मैं नही दे सकती मेरे हिस्से तुझको
दोनो को जोड़ने से जो तस्वीर बनती हैं
वो ही तो मेरे जीवन मे रंग भरती हैं



वो आए चुपके से मेरे घर
बिना मिले ही चल दिए...

वो दीवार मेरी ना रही


घर की पुरानी दीवार
अब नही रही अपनी
जहाँ मैं सबसे छिपकर
तुम्हारा नाम लिखा करती थी
अकेले मे जाकर तुमसे
बाते किया करती थी
नही देख पता था जिसे कोई
अब उस पर किसी ने
अपना नाम लिख दिया हैं
नही रही अब वो तुम्हारी संपत्ति
किसी ने उसे ज़बरदस्ती
कब्जिया लिया हैं.................
लेकिन किसी के कब्जा करने से
कोई किसी का नही हो पाता
ये तो तुम्हे भी पता हैं ना.......
वो दीवार मेरी ना रही तो क्या....
तुम तो मेरे हो........आज भी ...अब भी

Monday, January 16, 2012

अम्मी अब्बू के सपनो का बेटा....


अम्मी ने कहा मत बुन खवाब ....ठीक हैं
लेकिन क्या करूँ, खवाब बिना जिंदगी
जिंदगी नही लगती......
लगता हैं शमशान सी हैं जिंदगी
मैने कहा हम छोटे लोगो ने अगर चार पैसे कमा भी लिए तो
उनसे कहाँ काम चल पाएगा
माँ इतने पैसो से तो घर का चूल्हा भी
ठीक से नही जल पाएगा.....

अब्बू मैं नालयक नहीं लेकिन आप खुद बताओ
आप आठ बच्चो के बीच कहाँ से लाते इतना पैसा
जो मुझे बनाते कलक्टर..बाकी बच्चे
क्या यू ही सुला देते?

माँ तू ठीक कहती हैं हरफ़ से नही बनता खाना
लफ़जो से नही जलता चूल्हा, ग़ज़ल और शेर नही खाए जाते
लेकिन ये सब गुनगुनाए जाते हैं....भरे पेट..
अम्मी मेरी ग़ज़ल पेट की आग
नही बुझा सकती तो  क्या
दिल का दर्द तो भुला सकती हैं
पेट की आग तो कहीं भी बुझ जाएगी
मन की भूख कहाँ से खाना लाएगी?

अब्बू अगर मेरे लिखे हरफ़
मुकदर के कोरे कागज को
रंगीन कर पाते तो ज़रूर लिखता
कुछ हरफ़ अपने लिए, अपने वालो के लिए
नही फिरता यू मारा मारा..रोज़ी रोटी के लिए

Sunday, January 15, 2012


घर के बुजुर्ग घर की शान होते हैं
लेकिन वो लोग नही समझ पाते
जो बेजान होते हैं......
जब जाते हैं वो दुनिया से
तब समझ मे आता हैं
हट जाती हैं छत उपर से...
सिर पे आँधी तूफान होते हैं...
ख़ासने  की आवाज़ से
डर जाया करते थे जो लोग
उनके होने से.....
उनके जाते ही...घर
खुला मैदान होते हैं....
करो उनकी हिफ़ाज़त जब तक
हैं वो पास तुम्हारे................
खुदा के दिए वो वरदान होते हैं

ख़याल जो दिल मे दम तोड़ देते हैं


ख़याल जो दिल मे दम तोड़ देते हैं
बाहर आने मे शरमाते हैं………..
हम उनको हवा देने से भी घबराते हैं
आज बड़ी मुश्किल से बाहर लाए हैं...

1.मिलते हैं उनसे ऐसे
जैसे अजनबी हो कोई
दिल मे हैं अरमान
लेकिन आँखो मे शर्म का परदा……
मिलो को खुल के मिलो यार..
ये शरमाने  की तुम्हारी कौन सी अदा…..

2.नही लगता हैं दिल मेरा अब तेरे बगैर
लोग कहते हैं मरीज ए इश्क़ बन बैठा हैं तू
तुझे क्या मालूम…इश्क़ क्या होता हैं
खुद तो सज़ा दे बैठा हैं तू
आ और मुझे इस मर्ज से निजात दिला…
लोग भी डाले ताला अपने मुख पर

3.जान कर बहुत खुशी होती हैं
जब वो मेरे बारे मे सोचती हैं
जब भी करता हूँ जीने की कोशिश
वो दो चार गम और भेज देती हैं
अच्छा हैं उसका अंदाज़े मोहब्बत
ना जाने क्यूँ वो ...मेरे मे ...जीने की ललक
और भी भर देती हैं….

4. बुझी शम्मा तो ख़याल आया
या खुदा अब तो रुखसती का वक़्त आया
कहाँ जाउगा उनको छोड़ कर ए दोस्त
मन मे यही ख़याल आया…….
वो तो चले जाएँगे शम्मा बुझा कर
हमे कहाँ जाना हैं..ये समझ नही आया…