Thursday, December 13, 2012

वरना छाछ मे क्या रखा हैं

चाहो ने तो कर दिया हमको पूरा ढेर..
बाकी रह गये किश्त अब..बॅंक से हुआ बैर

गम के इस दौर मे खुशिया हैं केवल चार..
और तुम कहते हो..अब हम इन्हे भी दे मार....

क्यूँ डराते हो दुनिया वालो...
खुद तो करते हो इश्क़.......
प्रेम खूब करते हो....
हमे छाछ बतलाते... हो....

देता गिन के नीवाले तो उड़ जाते सबके होश
फेक रहे सब अन्न को..होकर के मदहोश

तुम्हारा मान रखा हैं..
वरना छाछ मे क्या रखा हैं

नही जानते की क्या कर रहे हैं वो..
छोड़कर थाली मे अन्न ..
बड़ी भूल कर रहे हैं वो

छाछ भी देती हैं फायदा
बस उसको पीने का कुछ हैं कायदा..

चीटी को कण, हाथी को मन का वादा हैं..
उठता ज़रूर हैं भूखा, खाना खिला कर ही सुलाता हैं..



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