Wednesday, April 18, 2012

सच कह कर....


सच कह कर खुद को ही, खुद से किया पराया
मन रह गया गया सामने, देह ने कहीं और डेरा जमाया
होती आज वो अपनी, मन ने बरसो बाद यही दोहराया
आज भी आँगन सूना था..हर कोना रीता रीता था
दिल के किसी कोने मे आज भी उसकी जगह सुरक्षित थी
उस जगह को कोई नही भर पाया था, यादों का गट्ठर साथ था..
शाम का समय भी था...थॅका हुआ शरीर था
सब पहले जैसा था लेकिन तुम नही थी...
तुम्हे लौटा जो दिया था मैने...सच कह कर....

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