Tuesday, March 27, 2012

संवाद...मेरे प्रियतम

ओ प्रियतमा (कविता) 
Maya Mrig ji ki kavita.......apke liye

तुम्‍हारे चेहरे पर गहराती झाइयां
तुम्‍हारे गुज़रे हुए कल में
झेली हुई धूप के निशान हैं
सूरज की एक एक किरण से
रोशनी के लिए
कितना लड़ी हो तुम....

...और तब से लगातार
उकरता रहा तुम्‍हारा इतिहास
चेहरे के सुनहरी पृष्‍ठ पर।

इन्‍हें छिपाओ मत प्रिय
दुपट्टे से ढंकने की
कोशिश ना करो

मेरी प्रियतमा !
मैं
तुम्‍हें
तुम्‍हारे पूरे अतीत सहित स्‍वीकार करता हूं...।

Meri kavita.......apke liye


मेरे प्रियतम                        
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तुम्हारी बात सुनकर
मेरी आँखो मे आ गये आँसू
तुमने मुझे किया स्वीकार
मुझे लगा मेरे नये दिन आ गये

मेरी झाइयो मे भी गहराता
मेरा अनुभव हैं
जो मुझे मेरी जिंदगी ने दिए हैं
तुम्हारे साथ रहते हुए
मुझे मिले हैं

तुम्हारा साथ था तो नही
लगी सूरज की तपन
नही लगी कोई थ्कन
बल्कि बढ़ा दी तुमने
मेरी लगन.............

थाम कर तुम्हारा हाथ
दूर तक जा सकती हूँ
तुम्हारे साथ तो सात
जनम बिता सकती हूँ

एहसान हैं की तुमने
मुझे मेरी तरह स्वीकार किया हैं
मेरे अतीत पे भी
तुम्हारा ही नाम लिखा हैं....


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