Saturday, February 4, 2012

समय की ज़ंज़ीरो मे...

तुम चुप रहे
मैं तुम्हारे बोलने का
इंतज़ार करती रही
मैं कई बार रूठी तुमसे
तुम्हारे मनुहार का
इंतज़ार करती रही
हर बार मेरा इंतज़ार रहा बेकार
ऐसी कौन सी हिचकिचाहट थी
जो नहीं स्वीकार कर
पा  रहा था हमारा प्यार
तुम्हारी खामोशी ने
हमे दूर किया हैं
खो देने को मज़बूर किया हैं..
लेकिन खोकर मेरे पास
आए भी तो क्या?
मैं भी अब मज़बूर हूँ
समय की ज़ंज़ीरो मे...

1 Comments:

At February 5, 2012 at 11:29 PM , Blogger अपर्णा खरे said...

bahut bahut abhaar Ravikar ji

 

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