Saturday, September 24, 2011

फेस बुक मे शायद हमेशा रात है ....


फेस बुक मे शायद हमेशा रात है ....
फिर भी नये दोस्तो से रोज़ मुलाकात हैं
करते हैं इंतेज़ार दोस्तो का हर वक़्त
कटती नही अब रात हैं...
मन जानता हैं ये भी एक मोह हैं
लेकिन इसे रोक पाना अब कहाँ मॅन के हाथ हैं
सपनो की दुनिया किसको नही अच्छी लगती 
सपने मन को भाते हैं...
ना जाने कितनी खुशिया दे जाते हैं
माना ....अभी मन ढूंढता है विपरीत लिंग 
कहना चाहता हैं बहुत कुछ..
लेकिन कह नही पाता...
बनाता रहता है नये मित्र 
वो खुद जो एक झूठ है 
यू सत्य का करता है अन्वेषण ..
अन्वेषण जो मन को खुशी दे क्या बुरा हैं
हमे अपनी खुशिया ही तो तलाश करनी हैं
मित्र नये हो या पुराने..
क्या फ़र्क पड़ता हैं???????????


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